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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - जरा भी उसकी आत्मा को दुख पहुंचा तो मुझे ऐसे राज्य से दूर ही रहना है. अपने भाई के हाथ से लेकर मुझे ऐसे राज्य की कोई जरूरत नहीं है. किसी को दुखी करके मैं सुखी नहीं बनना चाहता. हनुमान ने कहा कि आप निर्णय करने से पहले थोड़ा-सा सोचें और मुझे वहां जा करके आने दें. मैं देख करके आऊं उसके बाद आप तदनुसार निर्णय करें कि, आपके जाने से उसको दुख होगा या आपके जाने से उसके मन में प्रसन्नता होगी. आप बालक जैसी इस विचार धारा को मेरे आने के पश्चात् ही व्यवहार में लें. हनुमान स्वयं गये. राज दरबार लगा था और भरत के दरबार में जा करके हनुमान ने वहां बधाई दी कि अब राम का आगमन हो चुका है. वे अशोक वाटिका में विश्राम कर रहे हैं बहुत जल्दी उनका इस अयोध्या नगरी में प्रवेश होगा. मैं बधाई देने आया हूं और उनका संदेश देने आया हूं. भरत ने जैसे ही राम का नाम सुना वह भाव विभोर हो नृत्य करने लग गए. उनके मुँह से धन्यवाद का शब्द भी नहीं निकला, उसका भी दुष्काल पड़ गया. कैसा अपूर्व प्रेम था. अभिव्यक्ति नहीं मिली, शब्द नहीं मिले, नाचने लग गये. प्रेम के आंसू दोनो आंखों से आने लग गये. ऐसा हर्ष कि संपूर्ण शरीर रोमांचित हो गया. हनुमान तुरंत लौट गए और जाकर कह दिया कि राम इस सबकी आप बिल्कुल चिंता न करें. मैंने भरत से मिलकर देखा तो उनके चेहरे से आपके प्रति जो उनका प्रेम झलका, मैंने अध्ययन किया. जिस व्यक्ति के पास जा करके मैंने मात्र आपके आने की सूचना दी, आगमन की बधाई दी और वह ऐसे अपूर्व भाव से नृत्य करने लग गए, प्रेम के आंसुओं की धारा उनके नेत्रों से बह चली, शरीर में रोमांच हो गया कि आनन्द व्यक्त करने के लिए उनके पास शब्द ही नहीं थे, शब्दों का ही दुष्काल पड़ गया. राम ने निर्णय बदला कि अब मैं जरूर जाऊंगा. आप समझ गये होंगे कि मैत्री किसे कहा जाता है. कहने को हम मैत्री कह देते हैं, पर्युषण आता है, संवत्सरी आती है, नाटक कर लेते हैं, क्षमा याचना कर लेते हैं, ईद का त्यौहार आता है, एक दूसरे के गले मिल लेते हैं, क्रिसमस आता है, एक दूसरे को बधाई दे देते हैं. हरेक धार्मिक पर्व के अन्दर कहीं न कहीं आपको मैत्री का प्रकार मिल जायेगा. दुनिया का हर धर्म इसको मानता है. धर्म का प्राण तो यही है और यदि प्राण चला जाये और आप मुर्दे को उठा कर ले चलें उस धर्म का मूल्य क्या? वह क्या मोक्ष देगा? वह क्या आपको छुड़ायेगा? हम मरे हुए धर्म की उपासना कर रहे हैं. और प्रेम, वह तो जीवित धर्म है. जहां प्रेम होगा वहां अनीति, अन्याय कभी हो ही नहीं सकता, कभी सम्भव ही नहीं. इन दोनों का एक दूसरे के साथ अन्योन्य सम्बन्ध है. ____ मैं आपको यह समझा रहा था कि परद्रव्य को प्राप्त करने में जो आनन्द आता है, उसका वियोग कैसा दर्द पैदा करेगा. कैसा अपना परिवार होना चाहिए. परिवार का धर्म - 54 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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