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गुरुवाणी
आपकी ज़रा सी उपेक्षा आपके सम्पूर्ण जीवन का नाश कर देगी. आपके हृदय की । सारी पवित्रता चली जायेगी. कहने को कहा जाता है बड़ी छोटी-सी बात है, परन्तु छोटी सी बात भी कई बार बडी खतरनाक होती है. आप हवाई जहाज में यात्रा कर रहे हों और यदि मशीन में जरा सी गड़बड़ी हो जाये तो वह कैसी समस्या पैदा करती है? आप यहां से अपनी गाड़ी में जयपुर या कहीं घूमने के लिए निकले हों और टायर में यदि एक छोटा सा पंचर हो जाये तो फिर क्या हालत होती है? चलते समय जरा-सा कांच या कांटा लग जाए तो पांव की क्या हालत होती है? कहने को कहा जाता है, जरा-सा.
खाने के अन्दर अगर जरा सा विष आ जाये तो क्या हालत होती है? नाव में बैठ कर आप यात्रा कर रहे हों और नाव में जरा-सा छेद हो जाए तो क्या हालत होती है? एक ज़रा सी बात कितनी खतरनाक बनती है. धार्मिक कार्य और साधना के अन्दर जरा-सी भूल हो जाए तो क्या परिणाम होता है. इस जरा-सी बात की आप उपेक्षा न करें. गाड़ी आप स्वयं 100 कि. मी. की स्पीड से चलाते हैं. आपकी गाड़ी दौड़ रही हो और जरा-सी झपकी खा जाएँ तो यह यात्रा परलोक की यात्रा बन सकती है. एक जरा-सी भूल के परिणाम स्वरूप मौत हो सकती है.
साधना के क्षेत्र में यदि आप ज़रा-सी भूल करेंगे, याद रखिए, इसका इनाम किस प्रकार से मिलेगा. यहां तो पूर्णतः सावधान रहना है. जो उपार्जन कर रहे हैं उसमें विवेक होना चाहिए, उपार्जन की अपनी मर्यादा होनी चाहिए, उस उपार्जन के अन्दर आपकी मंगल-भावना आनी चाहिए कि इस वस्तु से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है.
धार्मिक दृष्टि से आत्मा से पदार्थ का कोई सम्बन्ध नहीं है. इस नैतिक दृष्टि से अपने कर्तव्य का हमें पालन करना चाहिए. एटैचमेंट नहीं, आसक्ति नहीं, अगर आसक्ति आ गई तो वियोग का दर्द बड़ा भयंकर होगा.
सारे संसार को रुलाने वाला, सारे देश का नक्शा बदल देने वाला, हिटलर विश्व युद्ध के समय लूटमार के द्वारा बहुत बड़ा खजाना संग्रह कर लिया था. बिल बॉक्स के अन्दर रहता था और जब उसे मालूम पड़ा कि बर्लिन घिर गया है अब मरने के सिवाय मेरे पास और कोई उपाय शेष नहीं रहा. सारी दुनिया को जीतने की कल्पना लेकर ढाई-तीन करोड़ व्यक्तियों को मौत के घाट जिसने उतार दिया, अरबों-खरबों की सम्पत्ति जिसने इकट्ठी कर ली, कैसा अटैचमेंट, कैसी आसक्ति, सारा खजाना उसके बिल बॉक्स में था. मन में इस प्रकार की एक भावी कल्पना कि सारे विश्व का साम्राज्य मेरे हाथ में होगा, अपार सम्पत्ति का मैं मालिक बन जाऊँगा और वह यह भूल गया कि कल मुझे मरना है और आसक्ति से घिरा हुआ जीवन, मरते समय ऐसा दर्द उसके अन्दर पैदा कर देता है कि वह इसी वियोग के दर्द से आहत हो जाता है कि मैंने जो उपार्जन किया है वह मुझे छोड़ कर जाना पड़ेगा.
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