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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॐ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी को अपने धर्मोपदेश एवं साहित्य से ज्ञान पथ पर आरूढ़ होने के लिए उत्प्रेरित किया. दिग्भ्रमित मानव को मुक्ति-मार्ग का वरण करने का उपदेश दिया और समाज के श्रेयस् के लिए अध्यात्म की शिक्षा दी. सुमधुर वक्ता आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी महराज ने विलक्षण सन्त परम्परा को अलंकृत कर हुए महान आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा प्रणीत ग्रन्थ 'धर्मबिन्दु' के आलोक में अपने प्रवचन द्वारा धर्म के विविध पक्षों पर प्रकाश डालकर व्यस्त और भ्रान्त जनमानस का पथ-प्रदर्शन किया, उन्हें अध्यात्म मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया ताकि वे मनुष्य जीवन की सार्थकता को पहचान सकें और आत्मा के तत्व का साक्षात्कार कर सकें. प्रस्तुत पुस्तक उसी दिव्य मृदुल वाणी की परिणति है. वस्तुतः मनुष्य का जीवन दर्द और उत्पीड़न से ओत-प्रोत है. वह अपनी पीड़ा को अपने अन्तर्मन में समेटे हुए समाज के बीहड़ कानन में भटक रहा है. इसी उत्पीड़न से जकड़ा हुआ उसका मन इसके समाधान की अपेक्षा से अपने अनथक प्रयास में लगा हुआ है. चाहे वह अर्थोपार्जन हो अथवा भौतिक सुखों के प्राप्ति की अभीप्सा, मानवीय प्रपीड़न हो या सामाजिक शोषण, व्यक्ति अज्ञान के अंधकार से पूर्णतः अभिभूत है और यहाँ तक कि मनुष्य मनुष्यता से हाथ धोये जा रहा है. महर्षि अरविन्द का उद्घोष याद आता है- 'आधुनिकता को चीरकर देखो तो आदिम सांसारिक सुखों की उपलब्धि के अहर्निश प्रयास में मनुष्य अपनी वास्तविकता को भुला बैठा है, तृष्णा की संतुष्टि में लगा हुआ वह मनुष्य अन्ततः एक ऐसे कगार पर आकर खड़ा होता है जहाँ उसे मात्र निराशा ही मिलती है, उसकी सुख प्राप्ति की तृष्णा एक मृगतृष्णा बनकर रह जाती है' तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः '. प्रस्तुत प्रवचन- कृति में श्रद्धेय आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी महाराज अपनी मृदुल यथार्थ वाणी से निश्चय ही मनुष्य के अन्तर्मन को आन्दोलित कर देते हैं. निष्ठुर से निष्ठुर, आधुनिक से अत्याधुनिक पाषाण हृदय को भी गुरुवर की मर्मभेदी वाणी एक बार झकझोर देती है, उनकी सरस और वैज्ञानिक अभिव्यक्ति का पान कर किसी का भी मन कम्पित हो उठता है, वह तत्काल तो बरबस अध्यात्म में सन्नद्ध हो ही जाता है. बड़ा अपूर्व प्रज्ञा कौशल पिरो उठा है आचार्य श्री की इस कृति में श्रोता- पाठक इसके श्रवण-पठन में तन्मय हुए बिना नहीं रह सकता. यत्र-तत्र उद्धृत दृष्टान्तों की प्रासंगिकता एवं आंग्लभाषा की छुट-पुट शब्दावली से प्रस्तुत पुस्तक में भाषा की समरसता एवं सहजता जीवन्त हो उठी है. दस अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में मनुष्य जीवन में सदाचार का मार्गदर्शन बड़े क्रमिक ढंग से दर्शाया गया है. दुःखी आत्माओं के दुःखों को दूर करने से आत्मा परिशुद्ध होकर परमात्मा की ओर उन्मुख होती है. पूज्य गुरु महाराज जी ने कहा है कि हमें कोई For Private And Personal Use Only 同
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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