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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी धर्मबिन्दु रचयिता आचार्य हरिभद्र सूरि : एक परिचय आचार्य श्री हरिभद्रसूरि जैन धर्म के पूर्वकालीन एवं उत्तरकालीन इतिहास के सीमा स्तम्भ के रूप में सत्य के उपासक, 14 विद्याओं के पारंगत महान जैन दार्शनिक, 1444 ग्रंथों के रचयिता तथा वृत्तिकार के रूप में सदियों से जाने जाते रहे हैं और युगों-युगों तक उनका नाम स्मरण किया जाता रहेगा. उनका जन्म चित्रकूट निवासी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम गंगण और पिता का नाम शंकर भट्ट था. भट्ट हरिभद्र प्रखर विद्वान थे, जिसके कारण चित्तौड के राजा जितारि के यहाँ राजपुरोहित पद पर नियुक्त किये गए थे. उन्हें अपने ज्ञान का बहुत गर्व था. उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि मुझे वाद-विवाद में जो भी परास्त कर देगा, उसका शिष्य बन जाऊँगा. एक बार वे एक उपाश्रय के रास्ते से डोली में बैठकर जा रहे थे कि अचानक उनके कानों में यह गाथा पड़ी: चक्किदुगं हरिपणगं, पणगं चक्कीण केसवो चक्की.. एक साध्वीजी संग्रहणी की यह गाथा बार-बार दुहरा रही थी. हरिभद्र ने ध्यान पूर्वक इसका अर्थ जानने का प्रयास किया. लेकिन असफल रहने पर साध्वीजी के पास जाकर कहा कि इस स्थान पर चकचकाहट किस बात की हो रही है? बिना अर्थ के गाथा का पुनरावर्त्तन क्यों हो रहा है? हरिभद्र की वाणी में वक्रता अधिक थी किन्तु साध्वीजी ने, जो धीर, गंभीर, क्रियाशील, एवं व्यवहार निपुण थी, कोमल शब्दों में कहा कि 'नूतन लिप्तं चिकचिकायते' अर्थात् नूतन लेप किया आंगन चकचकाट कर रहा है. इस सारगर्भित उत्तर को सुनकर हरिभद्र प्रभावित हुए. उन्हें ऐसे जवाब की आशा नहीं थी. उनके मन में आया कि न तो इस गाथा का अर्थ समझ में आया और न ही प्रत्युत्तर का मर्म समझ सका. उन्होंने साग्रह विनती की कि कृपया इसका अर्थ समझाइये. अपनी पूर्व कृत प्रतिज्ञा की बात भी उन्होंने साध्वी याकिनि को बताई कि वह उनसे दीक्षा ले लेंगे. 'प्रभावक चरित्र' में भी उल्लेख है कि साध्वीजी उसका अर्थ जानती थी लेकिन अपनी मर्यादा का पालन और ज्यादा लाभ उनको प्राप्त हो सके इसलिये उन्हें अपने गुरु आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजी के पास अर्थ समझने के लिए भेजा. जैनाचार्य के पास जाकर विवेकशील वाणी से उन्होंने उस गाथा का अर्थ पूछा. अब उनका गर्व खंडित हो चुका था. आचार्य जिनभद्रसूरि ने गाथा का अर्थ बताया तब हरिभद्र भट्ट का जैन धर्म के तत्वों को जानने की उत्सुकता जागी. तब जैनाचार्य ने कहा कि पूर्वोत्तर संदर्भ सहित जैन सिद्धान्त समझने के लिए मुनि जीवन को स्वीकार 586 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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