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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी सम्राट अकबर के समय की एक बात है. बीरबल उनके बहत ही मनपसन्द व्यक्ति थे. एक दिन दरबार में एक ऐसी बात चली. बीरबल एक बात तू मुझको बता. ये सभा में लोग बैठे हैं दीवाने आम में मुझे बता कि ये लोग इस समय क्या सोच रहे हैं. वह तो तरंगी आदमी था. बीरबल ने कहा हजूर! क्या मैं कोई पैगम्बर हूं? कोई फकीर हूं? मैं तो एक इंसान हूं. भला मैं लोगों की बात कैसे जान सकता हूं? कैसे आपको सुना सकता हूं? अकबर बोला! नहीं नहीं तुम मुझे समझाओ. बड़ा कुशल था. युक्तिबाज व्यक्ति था. बड़ा अच्छा मनोवैज्ञानिक था. बीरबल ने कहा हजूर! जब आपने आग्रह किया तो मुझे समझाना ही होगा. परन्तु हजूर मैं जानना चाहता हूं कि एक-एक व्यक्ति का बताऊँ या सबका एक साथ ही बताऊँ. अकबर बोले - नहीं नहीं. एक-एक व्यक्ति को तो बताने में काफी समय लग जाएगा. सबका एक-साथ ही बता दो. वह जानता था. वह बादशाह को अच्छी तरह से जानता था. लोगों के मिजाज़ से भी परिचित था. उसने कहा हजूर! इस दीवाने-आम के अन्दर, इतनी बड़ी सभा में ये जितने भी आपके सामने बैठे हैं. ये इस समय यही सोच रहे हैं कि आपका आयुष्य हजूर सौ वर्ष का हो. अब इस बात से कौन मना करे. सबकी गर्दनें हिलने लगीं कि हजुर, यही सोच रहे हैं. जितने लोग बैठे थे, सबने यही कहा कि हजूर, वे मन में यही सोच रहे हैं. आपका राज्य अफगानिस्तान से भी आगे बढ़ जाये और उधर बर्मा तक फैल जाये, आपका साम्राज्य बहुत लम्बा-चौड़ा हो जाए. ये सब यही भावना रखते हैं. आपकी प्रजा आपके हित का चिन्तन करती है. सारे गर्दन हिलाने लगे. उसने कहा हजूर! और कबूल कराऊँ. आप जितना कहें उतना कबूल करवाऊँ. नहीं-नहीं! अब मुझे संतोष हो गया, परन्तु धुनी था उसने कहा बीरबल! मुझे एक बात समझ में नहीं आती, तू मुझे समझा दे और तो सब बात मैं समझ गया. सारे शरीर में बाल उगते हैं, हथेली में क्यों नहीं? हजर ये तो “गॉड-गिफ्टेड" है. यहां आपका कायदा नहीं चलता. ये तो खुदा का कायदा है. मेरा भी कोई कायदा या बुद्धि नहीं चलती. यहां तो मौन रखना ही ज्यादा ठीक रहेगा. ___ तुम मुझे समझाओ. इस सारे शरीर में बाल उगते हैं, हथेली में क्यों नहीं उगते? बड़ा प्रश्न था, बड़ा आग्रह था. बीरबल ने कहा इससे बचने का कोई उपाय नहीं है. इसलिए इनको समझा देना, इनका मनोरंजन कर देना ही तर्कसंगत होगा. हमारे जीवन की सच्चाई कह गया बीरबल. Hot HERE 17 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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