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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3-गुरुवाणी पोस्टमैन आपके पास आए और रजिस्टर्ड इन्श्योर्ड लेटर लेकर आये तथा चेक चला जाये और खाली लिफाफा आपके हाथ में दे जाए तो आपकी कैसी दशा होगी. हमारी आज वही दशा है. धर्म चला गया, उसका पैकिंग लेकर हम घूम रहे हैं. मन को संतोष दे रहे हैं, प्रसन्न बन रहे हैं. बड़ा धर्मात्मा हूं, बड़ा धार्मिक हूं. परन्तु धार्मिक बनना इतना सरता नहीं है. यह कोई यूनिवर्सिटी का सर्टीफिकेट नहीं है जो आपको दे दिया जाय. यह तो स्वयं ऐसी योग्यता प्राप्त करनी पड़ती है तब व्यक्ति उसके योग्य बनता है. धार्मिक बनने के लिए बहुत बड़ा बलिदान देना पड़ता है. दुर्विचार की कुर्बानी देनी पड़ती है. सारी दुर्भावना खत्म करके और परमात्मा के योग्य अपना जीवन निर्माण करना पड़ता है. तब जाकर के व्यक्ति उस योग्य बनता है. इस प्रथम मंगलाचरण के अन्दर ये सारे ही परिचय इस महापुरुष ने दे दिए. यदि आपको धर्म में प्रवेश करना है तो इसकी शर्त है. सूत्र को प्रारम्भ करते समय उन्होंने कहा - धर्म कहां से प्रारम्भ होता है. "मैत्र्यादि भाव संयुक्तं" - एक ही वाक्य मैं आपको बताऊँगा - धर्म कहां से जन्म लेता है? मैत्री भावना, विश्वबन्धुत्व की भावना क्या है? प्राणिमात्र को स्वयं की दृष्टि से देखें, जहां मैं देखता हूं वहां भी मैं हूं. वहां भी मेरी आत्मा विद्यमान है और मेरे अन्दर ये सभी आत्माएं मौजूद हैं. जो मेरे अन्दर है, वही आपके अन्दर है. यह साक्षेप दृष्टि आनी चाहिए. मैत्र्यादि भाव. जगत् के सारे जीव मात्र मेरे परम मित्र हैं, उनके अनुग्रह से ही मेरा कल्याण होगा. इस मंगल भावना से परोपकार करना चाहिए. अहम् की भूमिका पर नहीं, और नाहं की दशा में कुछ नहीं हूं, नम्रता के द्वारा, उस नम्रता । में परोपकार करना होगा. यह आप मत समझ लेना कि मैं बहुत बड़ा उपकार कर रहा हूं. किसी को देकर के बड़ा उपकार कर रहा हूं. आप सोच लेना आपके घर पर भिखारी आता है. क्या कहकर के जाता है. आप यह समझते हैं कि भिखारी को आपने पांच रुपया दे दिया, बड़ा उपकार किया, आत्म-कल्याण हो गया. अपने अहम् का पोषण कर लिया. धर्म के माध्यम से भी व्यक्ति अपने जीवन में अहम् का पोषण करता है. देकर के भी अजीर्ण पैदा होता है. अहंकार पुण्य की खेती खा जाता है. भिखारी कितना बड़ा उपदेश आपको देकर के जाता है. कालिदास जैसे महान कवि ने बड़ा सुन्दर वर्णन किया - वह भिक्षा ग्रहण करने नहीं आता. वह सामान्य भिखारी नहीं है. वह आपको जागृत करके जाता है. आपकी भूल से आपको बचाता है. वह घर-घर जाकर क्या कहता और क्या उपदेश देता है. "बोधयन्ति न याचयन्ति भिक्षाद्वारा गृहे-गृहे" पण्डित कालिदास कहते हैं कि वह सामान्य भिखारी नहीं है. घर-घर फिर करके, भटक करके वह बोध देता है, उपदेश देता है. "बोधयन्ति न याचयन्ति" वह भीख नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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