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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी आगे चलकर उन्होंने स्पष्ट कर दिया-- तोयबिन्दुमिव यह तो शास्त्रों का अपार समुद्र है और भगवन्, मैंने तो उसमें से मात्र एक बिन्दु प्राप्त किया है. आप उनकी नम्रता तो देखिये. जरा भी ज्ञान का अजीर्ण नहीं है. कैसी विनम्रता और लघुता है. जरा भी उसमें अजीर्ण नहीं. जो मैंने प्राप्त किया प्रभु सब तेरी कृपा का परिणाम है और तेरे ही शास्त्रों एवं ग्रंथों में से चिन्तन करके, स्व मैंने इसे प्राप्त किया है. मैंने पहले ही आपसे कहा है - बिन्दु में से सिन्धु प्रकट करना है. आत्मा को अणु में से विराट तक पहुंचाना है, यह परोपकार की भावना स्व से सर्व आत्माओं तक पहुंचा देना है ताकि कहीं कोई समस्या न रहे. हम तो अटके हुए पड़े हैं, सम्प्रदाय के ऐसे बन्धन में जकड़े हुए पड़े हैं कि दूसरों को देखने की दृष्टि ही खत्म हो गई. मात्र पैकिंग रह गया और माल गायब हो गया. यहीं किसी बैंक में हमारे जमालखां पठान रहते थे जो उस बैंक में चौकीदार थे. एक बार मैनेजर का कोई काम ऐसा आ पड़ा कि उसे जाना पड़ा. चौकीदार से कहा “जरा समय खराब है, जोखिम है, तुम जरा ध्यान रखना, हिफाजत रखना.” चौकीदार बहुत वफादार था और कहा, "पठान बडे वफादार होते हैं. हजर बेफिक्र रहिए." पहले मेरी गर्दन जाएगी फिर ताला टूटेगा. आप निश्चिन्त रहिए. ताले पर सील लगाकर मैनेजर चले गये. पांच-दस दिनों के बाद जब मैनेजर अपना काम करके लौटे. पठान बड़ा खुश हुआ कि हुजूर जरा देखिए कि बैंक का ताला और सील सही सलामत है. पांच रुपये बख्शीष दिया और कहा, जमालखां वाह, बिल्कुल सुरक्षित है! सील खोलकर के जैसे ही ताला खोला -- अन्दर गए. मैनेजर देखकर आवाक रह गया कि सारा कैश लुट गया था, बैंक लुट गया था. बैंक की साइड में वेण्टीलेशन में से चोर घुसे थे और तिजोरी साफ कर गये थे. बाहर आकर वह मैनेजर चिल्लाया - अरे जमालखां! बैंक लुट गई. चौकीदार बोला हजूर अन्दर क्या हुआ, क्या नहीं, मुझे नहीं मालूम. आपने मुझसे बोला था कि सील और ताले का ध्यान रखना तो मैंने बराबर ध्यान रखा. अन्दर क्या हुआ वो आप जाने मेरा उससे कोई संबंध नहीं, हमारी दशा भी जमालखां पठान जैसी है. ज्ञानी पुरुष, साधु पुरुष हमें आकर कहते हैं कि भले आदमी तुम लट गये. अन्दर चोर घुस गया. मान आ गया, लोभ आ गया, सारी पवित्रता लुट गई. परोपकार की भावना लुट गई. महाराज वह सब कुछ हुआ. जो मैं अपना कपड़ा, अपना सिम्बल, अपना तिलक, बाहर की वेशभूषा पकड़ के बैठा हूं ताला और सील की तरह वह सुरक्षित होना चाहिए. अन्दर से आत्मा में से सब लुट जाये, उसकी परवाह नहीं. मेरा ओधा कायम, मेरा डण्डा कायम, तिलक कायम, त्रिपुण्ड कायम, बाहर का पैकिंग सही सलामत, ताला और सील में कोई गड़बड़ नहीं और अन्दर लुट गया. ऐसी मूर्खता हम क्यों करें कि पैकिंग का ध्यान रखें और माल सब गायब हो जाए. 14 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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