________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - - अरे, मैं सब जानता हूं, मेरी जानकारी है. मेरे ध्यान में है सब. घर का पूरा माल लेकर के चोर चलता बना. ये जानकारी के आनंद में डूबे रहे. आखिर सेठानी को गुस्सा आया और कहा - “तुम्हारी जानकारी पर धूल पड़े. मेरा पूरा घर तो लूट गया.” “यह जानकारी किस काम की? हम यदि कहें कि क्यों. बहुत प्रवचन सुने बहुत साधु सन्त आये." "हां महाराज." "क्रोध नहीं करना." “महाराज, जानता हूं." “लोभ नहीं करना." “महाराज पूरी जानकारी में है." "असत्य का आश्रय नहीं लेना." “जी साहब. सब जानता हूं." जानकारी में तो मफतलाल भी कम नहीं थे. पूरी जानकारी थी. हमारे अन्दर भी पूरी जानकारी है, क्रोध नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, गलत कार्य नहीं करना, बहुत बड़ी सजा मिलेगी. परन्तु जानकारी जब आचरण में नहीं आये तो उस जानकारी का क्या मूल्य. जब आप क्रिया करते हो. क्रिया के मूल्य को समझ नहीं पाये ऐसी गतानुगतिक से चल रहे हो. सब करते आये, मैं भी कर लूं तो उसका परिणाम, क्रिया का आनंद नहीं आयेगा. राजस्थान के बाडमेर जिले में कोई महाराज गये. वहां के लोग जरा सरल थे. जो चाहिए वह मिल गया. पैसा मिल गया फिर परमेश्वर की क्या जरूरत? परिवार मिल गया, सखी सपन्न हो गया. फिर देखा जायेगा. पैसे की कमी नहीं थी, हरा भरा परिवार था. सुखी सम्पन्न थे. महाराज सरल में अब तो प्रतिक्रमण करेगें. धार्मिक प्रार्थना है पश्चाताप की मंगल क्रिया है. लोग तैयार हो गये. संस्कार नहीं, प्रति श्रम का परिचय नहीं, अर्थ और रहस्य की कोई जानकारी नहीं. उस क्रिया में मनको कोई स्वाद नहीं क्योंकि कभी परिचय ही नहीं किया. आपका मेरा परिचय नहीं होगा तो प्रेम कहा से आयेगा. जब क्रिया का परिचय नहीं होता तो प्रेम कहां से जागृत होगा. जब तक उसके अर्थ का मूल्य ध्यान में नहीं आयेगा, वहां तक क्रिया का अनुराग नहीं होगा. आपको मालूम है कि राम के नाम में ताकत है. अरिहंत शब्द के सम्मुख में अपूर्व शक्ति है, सात-2 सागरोपम उपार्जन किया हआ पाप, एक-एक पद से समाप्त हो जाये, एक पद का पाप करें और क्षय हो जाये. 382 For Private And Personal Use Only