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%3Dगुरुवाणी
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- तापवाणा
पाणा
मफतलाल सेठ जैसा व्यक्ति बम्बई के अन्दर किसी उपनगर में रहता था. दो-तीन भाई थे. तथा होशियार. धार्मिक कार्य में भी आगे, बैठने को आगे जगह चाहिए. सम्मान चाहिए, जहां कहीं उपस्थिति का प्रसंग हो तो सम्मान चाहिए. उनका नाम तीन बार लेना पड़ा, उनको नशा चढ़ता. वह कहते कि हां ठीक है. माला पहनाओ और पाकेट लूटो. यह हालत थी, सम्मान मिलना चाहिए.
जगत का अपमान सहन करने वाला हमारे यहां सम्मान की इच्छा रखता है. परमात्मा के दरबार में सम्मान की अपेक्षा, यह तो ठीक है. लोग अनुमोदना के लिए कुछ भी करें परन्तु मन में तो सोचना चाहिए. हमारी क्या स्थिति है? आप विचार कर लीजिए, वहां उनका भी ऐसा ही था. व्याख्यान में आते, प्रतिक्रमण में आते, व्यवहार से आना पडता क्योंकि अग्रगण्य थे. तीनों आकर के आगे बैठा करते. त्रिपुटी थी, अब ये तीनों वहां पर आते, परन्तु उनका जीवन देखना हो तो घृणा उत्पन्न हो जाए.
इतना बड़ा शानदार बंगला बनाया, बड़े अलग तरीके से मकान को रंग करता था. पूरे बम्बई जैसे शहर से हर रोज एक व्यक्ति आकर कहता रंग करना है? कैसा करोगे? जरा नमूना दिखाओ. अब वह नमूना दिखाने के लिए रंग करने वाला बेचारा बड़ी मेहनत करता, ताकि सेठ पूरे बंगले का कोंन्ट्रेक्ट मुझे दे दें. लाभ की दृष्टि से बेचारा श्रम करता शाम को तीनों गाड़ी में आते. बाघमल जी अन्दर आकर देखते और कारीगरों से कहते क्या तुझको रंगना आता है? मकान बिगाड़ दिया. सारा पालिश बिगाड़ दिया, पालिश करना सीख कर आओ, फिर तुम्हे कान्ट्रेक्ट दिया जाएगा. शाम को विदाई कर देते, नमूने नमूने में पूरा बंगला रंगवा लिया. एक पैसा गांठ का नही लगा. ___ बड़े होशियार बडे चालाक, सारा काम इसी तरह से करवाते, फिर धार्मिक कहलाने में पहले नम्बर, बरोबर पर्युषण में आगमन हुआ. एक महीना पहले से मारवाड़ का कोई सहधर्मी भाई गया होगा. हम बात तो करते हैं, सहधर्मी, बन्धुओं की, जब प्रसंग आता है. मैंने दो रविवार तक आपको परिचय दिया, जरा हृदय में विचार आया कि मेरा यह पर्युषण सफल बन जाए. मैं किसी एक भाई को ऐसा खडा करूं, मैं किसी भाई के अन्दर अपनत्व की भावना पैदा करूं. उस आत्मा को कुछ देकर आत्म संतोष अनुभव करूं, ऐसी भावना आज तक पैदा नहीं हुई.
मेरा भाई मेरे से भी आगे बढ़े, कैसे हमारे पूर्वजों ने सहधर्मी बन्धुओं की पूजा की है. किस प्रकार की भक्ति की है? आपको कहा, बम्बई का परिचय दिया, आज के लोग किस प्रकार जीवन जी रहे हैं. यह परमेश्वर की भक्ति है. संघ की सेवा परमात्मा की सेवा है. दीन-दुखी आत्माओं की भक्ति वह जिनेश्वर भगवान की भक्ति है. अपने हृदय की करुणा का उसके द्वारा रक्षण किया जाता है. आत्मा का सुन्दर विकास किया जाता है देकर के हम स्वयं में कुछ पाते हैं. देकर के कुछ खाते में नहीं पाते हैं,
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