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% 3Dगुरुवाणी
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- भूतकाल की साधना का मूल्यांकन कभी वर्तमान में नहीं किया, वह कितनी अपूर्व साधना थी, जिसकी हम वर्तमान में सुगन्ध प्राप्त कर रहे हैं, कभी अपनी मनोदशा का परिचय प्राप्त नहीं किया कि वर्तमान में हमारे जीवन की मनोदशा कितनी दूषित है, यह बाहर का प्रदूषण कदाचित् शरीर को नुकसान पहुंचाएगा, प्राणघातक बन जाएगा, कदाचित बीमारियों का आक्रमण होगा, परन्तु यह मन का सारा वातावरण इतना दूषित है कि यह आत्मा के लिए खतरनाक बन जाएगा. आत्मा के लिए पीड़ा का कारण बन जाएगा. ___ बाहर के प्रदूषण से इतना खतरा नहीं,मन के प्रदूषण से है. इस प्रदूषण को कैसे शुद्ध बनाया जाए. साधना का प्रकार इसलिए समझाया जाता है, कि वर्तमान साधना के द्वारा अपने अन्तर जीवन की ऐसी शुद्धि करुं कि जिससे मन का प्रदूषण चला जाए. निर्मल वातावरण आ जाए, आज नहीं तो कल भविष्य में हम स्वयं की आत्मा के दूष्य बनें. ध्यान के द्वारा उस ध्येय को प्राप्त करने वाले बने में अपने लक्ष्य तक पहुंचने वाले बने.
मेरा कार्य क्षेत्र इतना सुन्दर हो कि जिसके परिणाम स्वरूप अपनी आत्मा की प्रसन्नता मझे मिले. कभी वह प्रसन्नता नष्ट न हो जाए. चित्त की प्रसन्नता परमात्मा की भक्ति का प्राण तत्व है. गत रविवार को मैंने जो शाब्दिक प्रहार किया था, आपकी अन्तस्-चेतना को जगाने के लिए, आपको मालूम होगा कि सारा जीवन अंधश्रद्धा से घिरा है. ___ जो परमात्मा नहीं दे सकते, जगत में किसी की ताकत नहीं कि आपको लाकर दे जाए, कृष्ण की द्वारिका नहीं बच पाई और कृष्ण विद्यमान थे. महावीर को साढ़े बारह वर्ष तक परीशह स्वीकार करना पड़ा, कोई प्रतिकार नहीं था. कोई देवता ने आकर के परमात्मा का रक्षण नहीं किया. राम तद्भव मोक्षगामी आत्मा थे. 14 वर्ष का वनवास उनको भोगना पड़ा. पांडवों की क्या स्थिति हुई, इतिहास साक्षी है. महापुरुषों के जीवन में ये सारी घटनाएं घटित हुईं. कर्मों द्वारा उपार्जित जो भी उपसर्ग था भोगना पड़ा, कोई प्रतिकार किसी का चला ही नहीं. ये सारी घटनाएं जब आपके सामने विद्यमान हैं, आप सब जानते हैं और देखते हैं.
सम्पर्क श्रद्धा में आत्मा को स्थिर रखना है, आप सब जानते हैं और देखते हैं. उससे मिलेगा क्या? अपनी श्रद्धा को नष्ट करूं. अपनी पवित्रता को मलिन करूं,पैसे के लिए? यदि मैं परमेश्वर को उपेक्षित करूं. एक बार आप दृढ़ निश्चय करिए. मुझे पैसे के लिए पाप नही करना है, अपनी श्रद्धा बेचकर मुझे जगत प्राप्त नहीं करना है.
गजरात के महामंत्री सम्राट कमार पाल की मृत्यु के बाद नया राजा अजयपाल बड़ा दुराचारी, बड़े दुष्ट प्रवृत्ति का था, जहां पर वह महामंत्री के रूप में आए, उनकी तीन-तीन पीढ़ियों ने राज्य की सेवा में अर्पण किया, बडे विश्वस्त थे. वफादार थे, परन्तु परमात्मा जिनेश्वर की उपासना करने वाले, अनुभव का भण्डार, कुशाग्रबुद्धि वाले, अपनी प्रजा के लिए बहुत कुछ किया. महामंत्री का जैसे ही तिलक लगाकर राजदरबार में उनका आगमन हुआ, मालूम पडा कि उस तिलक द्वारा ये कुमार पाल का व्यक्ति है. क्योंकि कुमार पाल
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