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- गुरुवाणी:
का स्मरण करने के लिए. हमारे जीवन की यह मंगलकारी साधना है. वह परम साधना का श्रेष्ठ साधन है. इसीलिए अरिहन्त की मूर्ति को हम प्रतिष्ठित करते हैं, परन्तु वे भूल जाते हैं. यहां पर बहुत सारे ऐसे मन्दिर हैं, जहां सिद्ध-भगवन्त की भी मूर्ति हमारे यहां प्रतिष्ठित है, सिद्ध की मूर्ति भी बनती है. निराकार की उपासना भी साकार के माध्यम से की जाती है. क्योंकि भावनाओं का कोई आकार नहीं होता. वहां तो निरंजन निराकार स्वरूप है. ___ आपको मैं पूछ् कि यह लाइट के अन्दर जो प्रकाश आता है, उसका कोई आकार है? प्रकाश का कोई आकार है? तो पुदगल जड़ हैं. चैतन्य नहीं हैं, परन्तु इसके अन्दर कोई आकार नहीं मिलेंगे, इसी तरह से सिद्धावस्था में रही हुई आत्मा का भी कोई आकार नहीं मिलेगा, क्योंकि आत्मा स्वयं निराकार रही हुई है. आत्मा स्वयं निरंजन है, कर्म से रहित है, आत्मा में कोई इन्द्रियां नहीं, सिद्ध भगवन्तों के अन्दर किसी प्रकार की आकृति नहीं, परन्तु अपनी परिकल्पना के द्वारा उन आत्माओं की मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित करके, साकार के माध्यम से निराकार की उपासना करते हैं.
इसीलिए कई जगह ऐसे सिद्ध भगवन्तों की मूर्ति भी आपको मिलेगी और कई जगह अरिहन्त भगवन की मूर्ति भी सिद्धावस्था की मिलेगी, जिस मूर्ति के अन्दर परिकर न हो. आसपास के अन्दर जो बनाया जाता है, उसे हम परिकर करते हैं. और जिसमें चार प्रतिमाएं अलग प्रकार की होती हैं वह अरिहन्त परमात्मा की मूर्ति कहलाती है. परन्तु जहां परिकर नहीं, आभामण्डल नहीं, पीछे किसी प्रकार की आकृति नहीं, साइड में कोई आकृति नहीं, मात्र जिन मूर्ति होती है, अरिहन्त की वह सिद्धावस्था की मूर्ति कहलाती है.
सिद्ध भगवन्तों के यहां पर परिकर रखना शिल्प के अन्दर प्रामाणिक कहा गया है परिकर रखने का एक प्रयोजन बतलाया गया, कि शिल्प शास्त्र में यदि इस प्रकार का परिकर रखा जाए मूर्ति के पास तो उस परिकर से परिवार की वृद्धि होती है, पुत्र बृद्धि होती है, काम की उन्नति होती है, हर प्रकार से परिकर रखना उन्नतिकर माना गया, यदि भूलनायक भगवान में परिकर नहीं है, मात्र सिद्ध-अवस्था का है तो शिल्प कला के अन्दर उसे दोष माना गया है.
कई कारणों से किसी जमाने के अन्दर नहीं रखा गया, अनुकूलता नहीं मिली, योग्य मार्ग-दर्शन देने वाले कोई व्यक्ति नहीं मिले, और प्रतिमा विराजित की जाए तो दोष पूर्ण नहीं माना गया, परन्तु शिल्प के अन्दर अधूरापन तो कहलाएगा. जहां कहीं भी हमारे यहां श्री-संघ होता है वहां यदि हम जिन-मंदिर की प्रतिष्ठा करते हैं, परिकर साथ में होता है जिससे संघ दिन प्रति दिन उन्नति करे, गांव की उन्नति हो, प्रजा सुखी बने, श्रीमन्त बने. यह उसके पीछे मंगल भावना रहती है.
एक बात आपको और बतलाऊं, हमारे यहां सापेक्ष दृष्टि से एक में अनेक का समावेश किया गया है. एक अरिहन्त भगवन्त की मूर्ति का दर्शन, एक सिद्ध भगवन्त का दर्शन
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