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=गुरुवाणी
हैं. सुबह हजरत घूमने निकले, कम्पनी बाग की तरफ नगर के कोई बहत बडे सेठ परलोक पहुंच गये थे. गांव के जितने भी सज्जन पुरुष थे, वे अन्तिम यात्रा में आ रहे थे, मन में सोचा पूरा गांव यहां दिख रहा है, कोई महापुरुष मर गया है, नहीं तो इतने प्रतिष्ठित, महाजन, पूरे गांव के लोग न जाते.
रास्ते चलते किसी आदमी से पूछा - हू इज डेड.कौन मरा? “मालूम नहीं साहब."
वह बेचारा कपाल पर हाथ देकर रोने लगा, आज तो मुलाकात का समय दिया, कैसा अफसोस बेचारे चले गए, परलोक पहुंच गए. इंग्लैंण्ड समाचार भेज दिया “दी ग्रेटेस्ट इन्जीनियर आफ इंण्डिया” “मालूम नहीं साहब" "टू डे एक्सपायरड."
लाख दो लाख रुपया अपने दोस्त का बरबाद कर दिया, समय नष्ट कर दिया, वापिस घूम करके इंगलैड चल दिया, और रिपोर्ट दे दी कि जिस को हम लाना चाहते थे वे खत्म हो गए. अफसोस की बात है, हमारा यह दुर्भाग्य है कि हम उनको ला नहीं सके, खत्म हुई बात.
अधूरा व्यक्ति सारी दुनियां को अंधेरे में रखेगा. यह है अधूरी जानकारी का परिणाम. हमारी दशा भी “मालूम नहीं साहब" जैसी है. बात आत्मा की करें, प्रश्न मोक्ष का करें, और संसार में रहना भी उनको नहीं आता. अपने परिवार के अन्दर जहां तक प्रेम का अभाव होगा, वहां तक परमात्मा की खोज किस प्रकार पूरी होगी?
पहले तो अपने जीवन के अन्दर उस प्रेम को प्रतिष्ठित नहीं किया कि प्रेम अपने परिवार तक भी व्यापक नहीं. जहां तक प्रेम में पूर्णता नहीं मिलेगी तो परमेश्वर की खोज सफल कैसे होगी? फिर भी मैं धन्यवाद देता हूं कि थोड़ा बहुत तो आप प्रश्न करते है, यह तो प्रश्न की सारी भूमिका मैने आपको बतलाई. आज दो तीन ही प्रश्न थे, इसीलिए ज्यादा समय मैंने नहीं लिया.
किसी व्यक्ति कि जिज्ञासा थी कि हमारे यहां जैन-दर्शन के अन्दर लोग कहा करते है. कि अरिहन्त परमात्मा हमारे जीवन पर सर्वोपरि उपकार करने वाले हैं. क्योंकि सर्वज्ञ की स्थिति में सारे विश्व का जिन्होंने दर्शन किया, सारे जगत का जिनको परिचय हो गया. वह परिचय जगत का आत्माओं के परिवर्तन के लिए हो. इस दृष्टि से जगत से विक्रत होने के लिए परमात्मा दिखला देते हैं, प्रवचन उनका परिवर्तन लाने के लिए होता है. हमारे जीवन पर उनका सबसे महान उपकार होता है.
हर जिन मन्दिर के अन्दर अरिहन्त परमात्मा की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है. प्रश्न कर्ता ने मुझे लिखा-ऐसे सिद्ध भगवन्तों की मूर्ति क्यों नहीं? __मैंने आपको समझा दिया कि हमारे जीवन पर सबसे निकटतम उपकार, सबसे महानतम उपकार अरिहन्त भगवन का होता है. इसी दृष्टि से हम आनंद भाव से सर्व-प्रथम अरिहन्त प्रभु की मूर्ति की प्रतिष्ठा करते हैं, उनके गुणों का स्मरण करने के लिए, उनके उपकार
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