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गुरुवाणी
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शाम तक वही चिन्तन चल रहा था, मैं इसके आगे क्या लिखं? वही दार्शनिक चिन्तन. उसी कर्तव्य के अन्दर स्वयं को उपस्थित रखा. छत्तीस वर्ष निकल गये.
बड़े आश्चर्य की बात है, एक दिन लिखते-लिखते, कार्य करते करते, दीपक के अन्दर से तेल समाप्त हो गया. तेल खत्म होने को आया, उनकी स्त्री ने विचार किया, भामती ने उनकी स्त्री का नाम था भामती. मन में एक विचार आया कि पतिदेव सरस्वती की साधना कर रहे हैं. शंकर आशय पर टीका लिख रहे हैं. महान कार्य लेकर के चल रहे हैं. मैं किस प्रकार इनको सहयोग दूं.
उनकी घर वाली ने कितना सुन्दर सहयोग दिया, जब नजर आया कि तेल डालना बाकी है. दीपक बुझने की तैयारी में है, लाकरके उसने तेल डाला. जैसे ही तेल डाल करके वह जाने लगी, अचानक वाचस्पति मिश्र का ध्यान भंग हुआ. उन्होंने नजर उठाकर के जब देखा, उस स्त्री से पूछा-तू कौन है? उनकी स्वयं की स्त्री थी.
छत्तीस वर्ष हो गये थे, शादी किये हुए. अपने कार्य में ऐसे मग्न बन गए, ऐसे डूब गए उस कार्य के अन्दर, बाहर क्या हो रहा है? उन्हें मालूम नहीं समय पर भोजन आता समय पर स्नान करते, समय पर अपने लेखन कार्य में बैठ जाते. सारा उनका जीवन चिन्तन में चला जाता.
छत्तीस वर्ष के बाद अपनी स्त्री को उन्होंने पहली बार देखा, और बड़े आश्चर्य से पूछा-तुम कौन हो?
बड़ी नम्रता से जबाव मिला - "आपकी अर्धांगिनी भामती हूं. आप मुझे पहचाने नहीं?"
छत्तीस वर्ष निकलने के बाद चेहरे में परिवर्तन आ गया, बाल सफेद हो गए, परन्तु उनकी साधना में इस प्रकार से वह सहयोग देने वाली बनी. मन के इतने प्रसन्न हो मण्डन मिश्र ने कहा - "यह मेरी ज्ञान की सारी जो साधना है, आज तक मैंने जीवन में जो श्रम किया है वह तुझे अर्पित है."
सारी टीका का नाम उन्होंने अपनी स्त्री के नाम कर दिया. आज तक जगत के अन्दर वह ग्रंथ प्रसिद्ध है, विश्व के बहुत उच्च विद्यालयों के अन्दर, बहुत उच्च अध्ययन में इस ग्रंथ का रखकर अध्ययन कराया जाता है. ब्रह्म सूत्र की उस पर जो टीका लिखी गई, उस टीका का नाम रखा गया-भामती.
दुनिया के हर पंडित विद्वान उसे जानते हैं.
मुझे ज्ञान के इस क्षेत्र के अन्दर इतना ही कहना था. इस गहराई में जब उन्होंने डुबकी लगायी. जीवन के छत्तीस वर्ष निकाल दिये जाने की इच्छा भी नहीं हुई. उस कार्य के अन्दर ऐसी प्रवीणता उन्होंने प्राप्त की. कि हर क्षेत्र के अन्दर जैसे मैंने आपको कहा है. जड क्षेत्र के अन्दर संशोधन में एडीसन ने जिस प्रकार का कार्य किया. साढ़े तीन सौ वस्तुओं का विस्तार करने वाला, सुबह से शाम तक बैठा रहता. प्रयोगशाला में यह भी पता नहीं लगता, मैंने खाया है या नहीं खाया.
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