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=गुरुवाणी
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नजर नहीं आयेगा. चित-वृतियों के अन्दर विचार में चंचलता हो, हृदय के अन्दर उद्वेग हो. आवेश हो तो वह व्यक्ति अपनी आत्म-दशा का अनभव कभी ध्यान की स्थिरता में प्राप्त नहीं कर पाएगा. वह स्थिरता आएगी नहीं.
अस्थिरता में स्थिरता की कोई संभावना नहीं. चित-वृतियों का निरोध करें, एकान्त में कभी स्वयं को खोजने का हमने प्रयास ही नहीं किया. वह प्रयास करना है.
महर्षि अरविन्द, जीवन की साधना काल के अन्दर जीवन के चालीस वर्ष तक एकान्त में रहे. एक ही रूप में, उसी ध्यानस्थ अवस्था में, चालीस वर्ष उन्होंने व्यतीत कर दिये. मैं कौन हूं? ये जानने का प्रयास चालीस वर्ष तक उन्होंने किया. हमने इसके लिए चार दिन भी नहीं निकाले. मैं कौन हूं? यह जानने का अन्तर में कभी वह जिज्ञासा या प्यास उत्पन्न नहीं हुई.
जीवन के चालीस वर्ष जो व्यक्ति अपने को खोजने में निकाले, उसका अनुभव किस प्रकार का होगा. आप जरा विचार कीजिए. कितने ही व्यक्तियों की साधना के विषय में जब जानने का प्रयास करते हैं तो बड़ा आश्चर्य होता है.
एक बहुत बड़े महात्मा थे. दर्शन शास्त्र के महान विद्धान थे. अद्भुत ज्ञान उनके पास में था. बड़ी जबरदस्त शक्ति उनके पास थी. जवान अवस्था थी. शादी तो कर दी गई परन्तु उसके पश्चात जब आत्म-संशोधन की गहराई में उतरे, मन में एक संकल्प किया कि मुझे यह कार्य तो करना है. सरस्वती की कृपा से जरूर मेरा एक संकल्प सफल हो जाएगा. ____ जहां तक दृढ़ संकल्प होता है. मुझे यह कार्य करना है. फिर कोई विडम्बना नहीं रहती, कोई समस्या नहीं रहती.
उसके बाद उन्होंने अपने कार्य के अन्दर प्रवृत्ति शुरू कर दी. कितने ही वर्ष निकल गऐ. आद्यशंकराचार्य का ब्रह्म-सूत्र भाष्य था, बड़ा सुन्दर दार्शनिक ग्रंथ है. उन्होंने अपने विचार उसके अन्दर प्रस्तुत किए. उस ब्रह्मसूत्र को सरल बनाने के लिए. लोग कुछ समझ सकें आत्मा के विषय में, स्वयं के विषय में, बड़े सुन्दर तरीके से उन्होंने उस वस्तु को वहां पर रखा. उस पर टीका लिखाने का प्रयास किया. वाचस्पति मिश्रके जीवन के छत्तीस वर्ष निकल गये. उस ज्ञान की उपासना में, एक क्षेत्र की साधना में, सरस्वती की साधना में ही जीवन के छत्तीस वर्ष निकल गये. ___छत्तीस वर्ष तक अपने कक्ष में बैठकर वे अपनी आराधना में लग गये. बाहर का कोई लक्ष्य ही उनके पास में नहीं था. स्वयं के अन्दर केन्द्रित थे, उसी के विचार के अन्दर ऐसे मग्न बन गये कि बाहर की दुनिया का उनको ज्ञान ही नहीं रहा.
संयोग देखिये. शादीशुदा थे. जवान स्त्री थी. परिवार सम्पन्न था, परन्तु उनका प्रयोजन मात्र कलम और दवात से था. अपना लेखन कार्य उसी प्रकार से कर रहे थे. सुबह से
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