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%Dगुरुवाणी
अतुच्छम्. भाषा के अन्दर किसी प्रकार की तुच्छता या दरिद्रता नहीं होनी चाहिये, अपनी भाषा के अन्दर किसी प्रकार का गर्व नहीं होनी चाहिये. नहीं तो व्यक्ति जब बोलेगा, उसके अन्दर हृदय की दुर्गन्धि ही दुर्गन्धि उत्पन्न होगी. श्रवण करने वाले व्यक्ति में भी अरुचि पैदा करेगी. मरे हुए मुर्दे को भी हम छुने में विचार करते हैं. मरे हुए शब्द का स्पर्श कौन करेगा. जिसमें प्रेम और मैत्री का अभाव हो, जो मरे हुए शब्द हों, उनकी यदि आप डिलीवरी दो तो कौन स्वीकार करने को तैयार हैं.. __इसलिए मेरा कहना था. अतुच्छम् - कभी तुच्छता, तिरस्कार अपने शब्दों में नहीं होना चाहिये. नहीं तो उनसे प्रेम का संबन्ध टूट जाता है.
गर्व रहितम, उन शब्दों के अन्दर गर्व नहीं होना चाहिये. हिन्दू संस्कृति के अन्दर तो गर्व का बहत तिरस्कार किया गया. जीवन के अन्दर की विकृति का परिचय गर्व से होता है. यह गर्व किसी काम का नहीं. धर्म क्रिया के अन्दर व्यक्ति को मजबूत करने वाला, उसका टॉनिक नम्रता और लघुता हैं, गर्व नहीं
"लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर.' जहां नम्रता होगी, जहां लघुता होगी, वहीं पर प्रभुता का दर्शन होगा. यदि पहले से ही प्रभुता आ गई तो प्रभु दूर चले जायेंगे. ऐसे दुर्गन्धमय वातावरण में परमात्म तत्व का वास नहीं हो सकता. हमारा जीवन बड़ा लघु होना चाहिए. आप देखते हैं, सुई के अन्दर आप डोरा डालिये, पर डोरा डालते समय सुई के अन्दर क्या किया जाता है. धागे को, सूत को कितना मसला जाता है? प्रवेश करने के लिए पहले थूक लगाकर, पानी लगाकर उसे मसलते हैं. नोकदार बनाते हैं. जैसे ही उसमें नम्रता आ जाती है सूई में प्रवेश हो जाता है.
प्रभु के द्वार पर भी मन को मसलकर, नम्र बनाकर आवाज देना नहीं तो प्रभु के द्वार में प्रवेश नहीं होगा. सुई के छेद के अन्दर भी धागे को मसल करके प्रवेश दिया जाता है. प्रवेश वहीं तक रहता है, जहां तक धागे में सरलता हो. परन्तु यदि एक गांठ बीच में आ जाये तो प्रभु के द्वार में प्रवेश बन्द हो जायेगा, फिर वह कभी प्रवेश नहीं पा सकेगा.
सुई में पिरोई गई यह नम्रता चमत्कार शक्ति है. चमत्कार यह कि इस नम्रता को लेकर उसमें एक बहुत बड़ी सृजनात्मक शक्ति आ गई है. सृजनात्मक शक्ति का परिणाम यह कि वह सबको एक कर देती है. चाहे कितने फटे हुए कपड़े हैं, जितनी दर्जी की दुकानें हैं, उनको सीने का काम इसी नम्रता के द्वारा किया जाता है. अन्दर प्रवेश कब मिलता है? नीचा होने पर उसकी नोक कितनी तेज होती है? बड़ा नुकीला होता है सुई का अग्र भाग. इसी कारण अन्दर में आसानी से प्रवेश मिल जाता है एक दूसरे को एक कर देती है. सुई का सम्मान कैसे होता है? इस एकता के कार्य से उसकी नम्रता के कारण सारा ज को नमस्कार करता हैं. किसी भी दर्जी के यहां जाइये. कोई दर्जी
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