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-गुरुवाणी:
"भाग्यं फलति सर्वत्र न च विद्या न च पौरुषम्" पूर्व में जो कार्य आप करके आए. जैसे प्रारब्ध का निर्माण करके आए. प्रारब्ध बड़ा बलवान होता है. सारे प्रयत्न को वह एक बार निष्फल कर देता है. इतना प्रारब्ध उनका बलवान था. वहीं पर बैठ गए. दिन के बारह बज गए, एक ग्राहक नहीं आया, प्रारब्ध ही ऐसा था. किसी व्यक्ति का ध्यान उधर नहीं गया.
चन्दूलाल सेठ को प्यास लगी, कहा – यार बड़ी तेज प्यास लगी है और भूख भी लगी है. कुछ उपाय करना चाहिए. मेरे पास तो सिर्फ चवन्नी बची है. कहा - कोई हर्ज नहीं. आधा गिलास चवन्नी है. भरा गिलास का यहां आठ आना है. अगर तुम चाहो तो बोहनी करा दो.
चवन्नी निकाल के दे दी. वह समझ गया. पानी उसको पिला दिया. दो बजे के समय मफतलाल की हालत बड़ी बिगड़ गई. चक्कर आने लग गया. ऐसी भयंकर प्यास, मूर्छा सी आने लगी. उसने कहा यार चन्दूलाल मेरी हालत बहुत खराब हो रही है.
उसने कहा – जो मैंने किया वह तुम भी करो. मैंने तुम्हें बोहनी करा दी, तुम मुझे बोहनी करा दो. हम दोनों तो पार्टनर हैं. ग्राहक नहीं आया उसकी चिन्ता नहीं. चार आने पॉकेट से निकाल कर दे दिया और पानी पी लिया. थोड़ी शान्ति मिली, प्यास बुझी, और यही व्यवहार दोनों के पास शाम तक चलता रहा, टर्न ओवर, चार आने इस पॉकेट से उस पॉकेट में, उस पॉकेट से इस पॉकेट में शाम तक सारा शर्बत खत्म हो गया. व्यापार पूरा करके लौटे. उनके किसी मित्र ने कहा - यार कैसा रहा? ____ कहा - व्यापार तो बहुत अच्छा रहा लेकिन नफा कुछ नहीं हुआ. आप समझ गए मेरी बात. हमारी प्रार्थना का व्यापार भी ऐसा ही है. रोज जाएं परमात्मा के पास, रोज जप करें, तप करें, दान पुण्य करें. मफतलाल जैसा व्यापार बहुत किया. टर्न-ओवर बहुत चला. परंत नफा कछ नहीं जीरो क्योंकि अंदर बैर है. कटता है. अंदर मैत्री और प्रेम का अभाव है. यह कषाय सब खा जाता है. आपकी सारी कमाई यह लूट लेता हैं इसलिए महावीर ने कहा पहले मैत्री और प्रेम लेकर मेरे पास आओ. तब मैं तुम्हें पूर्ण बनाऊंगा, जहां तक मैत्री और प्रेम के तत्व का अभाव होगा, वहां तक आत्मा कभी पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाएगी. जीवन की सारी साधना आपकी अपूर्ण रहेगी. साधना को पूर्ण करने के लिए प्रेम और मैत्री चाहिए. इसलिए इसका परिचय दिया और बताया कि इसे नष्ट करने का साधन निन्दा का त्याग है. ऐसी कोई निन्दा, पर निन्दा, पर चर्चा मैं नहीं करूंगा. जिससे बैर की परंपरा बढे या साम्प्रदायिक दर्भावना बढे. मैंने कहा आपसे --- सारे धर्मों के अंदर आज विकृति आ गई. हम उसे संस्कार नहीं दे पाए. हमारी सारी संस्कृति आज विकृति बन गई. मन की सारी उदारता आज खत्म हो गई. अनुदार प्रकृति से की गई साधना किस प्रकार से सफल बनेगी. सर्वप्रथम जीवन की सफलता को प्राप्त करने की साध शुद्ध करो. कभी ऐसा गलत बोलने का प्रयास नहीं करना.
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