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गरुवाणी
तो अपने पति को कुएँ के अन्दर लात मार कर डाल दिया था, यहां बहुत सती-सावित्री बन रही है. बहू का इतना कहना था कि सास को चक्कर आ गया और एकदम बेहोश होकर गिर पड़ी. जब होश आया तो उसके दिमाग में तनाव था. दोनों दुकान पर थे बाप-बेटे. घर पर कोई था नहीं. वह मन में सोचने लगी कि अब मोहल्ले में मुंह कैसे दिखाऊंगी. यह बात आज तो मुझ से कही है, कल मोहल्ले में जायेगी. फिर पूरे गांव में जायेगी. सगे सम्बन्धियों तक बात पहुंच जायेगी. मेरे लिये यह मरण से भी भंयकर होगा. यह सोचकर वह ऊपर गई और डोरी लेकर गले में फांसी लगा ली और मर गई.
उस वाणी का परिणाम आत्मघात तक पहुंच गया. कुछ समय बाद भोजन के लिए पति जी आये. नीचे आकर बैठे तो देखा उनकी श्राविका नहीं है घर में, बेचारे ऊपर गये. जाकर कमरे में देखा, वहाँ श्राविका की लाश लटकर रही थी. तरन्त समझ गये कल की घटना. मैंने अपने पेट से बात निकाली, बच्चे को कही. उस बात का यह परिणाम हुआ. इसकी मौत का कारण बनी. इस सारे अनर्थ का कारण मैं हूं,
किसी के मर्म वचन का प्रकट कर देना, किसी की कमजोरी को प्रकट करना या करा देना. किसी के पाप का प्रकाशन कर देना, कितना बड़ा अनर्थ पैदा करता है. पर-निन्दा के अन्तर्गत आता है. ऐसा अनर्थ मेरे कारण हुआ. इस पाप का प्रायश्चित क्या किया जाये? उसी सोच विचार में वे स्वयं लटक गये, काफी समय तक, दुकान पर जब बाप लौटकर नहीं आये, तो लड़के ने दुकान बन्द की और देखा कि पिता जी क्यों नहीं आये, उनकी प्रतीक्षा में वह भोजन के लिए न जा सका था.
दुकान बन्द करके वह घर पर आया, नीचे भोजन किया, पूछा अपनी बहू से --- "कहां हैं पिता जी? यहां, माता जी भी नहीं हैं." लाज, मर्यादा शर्म ऐसी चीज है. बह ऊपर जा नहीं सकी. नीचे ही रही.
बहू ने कह दिया, "जाओ ऊपर कुछ करते होंगे. मिटिंग-आदि कुछ करते होंगे. जब से ऊपर गये तब से अभी इन दोनों में से कोई आया नही." लड़का ऊपर गया देखा नीचे मां की लाश पड़ी है और बाप की लाश लटक रही है. बालक समझ गया कि सारा पाप मेरे कारण हुआ. इस अनर्थ का कारण मैं हूं. बहू के कहने से विवेक खो दिया. मेरी मां की कुछ ऐसी कमजोरी थी जो कर्म के अधीन है. मैंने यह बात कर दी, उसका यह परिणाम हआ और मैं माता-पिता की मौत का कारण बना. मातृ हत्या-पितृ हत्या का भयंकर पाप मैंने किया. इस पाप का क्या प्रायश्चित करूं. किसे जाकर अब मंह दिखाऊं. मेरे जीवन का आधार ही चला गया. पिता की लाश उतारी और स्वयं उस डोरी के अन्दर स्वयं का आत्माघात कर दिया. बहुत देर तक बहू नीचे विचार में पड़ी रही. क्या अभी तक पति भी ऊपर से आये नहीं, सास ससुर भी ऊपर क्या कर रहे हैं, ये लोग? दिन के दो बजने को आये. अभी क्या कर रहें हैं, ये लोग? चुपचाप धीमे-धीमे ऊपर आई. पर्दे में झांककर देखा तो अवाक रह गई.
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