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- गुरुवाणी:
तो लक्ष्मी की कृपा है. गुजराती में कहा है पैसा है तो "सेठ नाथालाल." अगर पैसा चला गया, दान शीलता न रही तो कहते है "नाथियो." इतना बड़ा परिवर्तन आता है. देने से हमारी इज्जत होती है. चमक होती है.
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आखिर वही हुआ. परदेस जाते हुए रास्ते में उसे प्यास लगी. पुराने जमाने में लोग लुटिया डोरी रखते थे पास में अपना साधन अपने साथ रखते थे. आहार की पवित्रता का ख्याल रखते थे. गर्मी के दिन, पानी निकालने के लिए वह बेचारा कुएं में झुका. डोरी बांध करके लोटी डाली. सोच रहा था गर्मी का समय है थोड़ा पानी पी लें. सुस्ता लें, उसके बाद चलेंगे. पास में ही घर वाली थी, उसके मन में विचार आया कि यह कैसी निर्भागी आत्मा मुझे मिली ? जब से शादी हुई है, खाने का पता नही, पहनने का ठिकाना नही, हर समय सुबह से शाम तक न जाने कितनी गालियां सुननी पड़ी है. सोच के इसी आवेश में उसने पति को एक लात लगाई और कुएं में गिरा दिया. सोच रही थी कि अब हमेशा के लिए मेरे दुख का अन्त हो जाएगा. कई बार आवेश में ऐसे अशुभ निमित्त मिलते है. घरवाली को भी कभी आवेश में पति ने ऐसे कुछ शब्द बोल दिए होंगे. शब्द सहन नही हुये और जब मौका मिला उसने प्रतिक्रिया में ऐसा किया, उस बेचारे को कुएं में गिरा दिया. वह अपने बच्चे को लेकर पीहर में चली गई. उस जमाने में तार टेलीफोन थे नहीं. लम्बा चौड़ा परिवार नहीं था. कोई ऐसी कल्पना भी कैसे करे ? गांव में गई, जाकर कह दिया कि वे तो विदेश गए हैं धन उपार्जन के लिए कह गये है कि चार छह महीने में धन कमाकर आऊंगा, तब तुझे लेने आऊंगा.
लोगों ने विश्वास कर लिया. उस जमाने में छह-छह महीने तक की यात्रा होती थी. एक बार ही घर आते थे वर्ष में होली दीवाली घर आते. न चाह थी कि विदेश में क्या हुआ, क्या नही हुआ ? कोई ऐसे साधन नही थे. साधन के अभाव. सत्य क्या है ? यह कैसे मालूम पड़े? वह तो बड़े आनंद से रहने लगी कि हमेशा का दुख दर्द चला गया. रोज सुनाया करते, रोज ताना मारते कि तू जब से घर में आई तब से लक्ष्मी चली गई. अब यह कौन सहन करे ?
परन्तु जैसे ही वह कुएं में गिरे उनके पुण्य ने साथ दिया. एक पत्थर मिल गया. उसे पकड़ कर वे कुएं में खड़े रहे. डूबे नहीं, मरे नही सिर्फ थोड़ी ही चोट आ गई. आने जाने वाले कई ऐसे यात्री थे जिनको दया आई, उन्होंने इन्हे बचा लिया. अब इन्हें अपने जीवन पर विचार आया कि उस जीव को मैंने बहुत कहा था, उसी का यह परिणाम है. आवेश में आकर वह मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर गई है. परंतु इस पाप के उदय होने पर उसने समझदारी से काम लिया, बड़ा गंभीर रहा. परिणाम स्वरूप उसके लिए कोई शब्द नही बोला. सोचा कि यह तो मेरे कर्म का दोष है. वह निर्दोष है.
वह साधुओं और मुनियों के सम्पर्क में आया. एक सज्जन मिल गए. वे सहधर्मियो की भक्ति करने वाले थे. कहा कि मेरे साथ चलो. वे इसे देश विदेश में ले गये. बहुत
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