SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी धर्म कार्य इसने किया नहीं. इसका सारा मनुष्य-जन्म निष्फल गया है. इसका सारा जीवन पाप प्रवृत्ति से भरा हुआ रहा. ऐसी दूषित आत्मा की लाश है यह. इसे खाना छोड़. सियार ने कहा भगवन्! आपका आदेश तो उचित है परन्तु मुझे भूख इतनी सता रही है कि जीना दुष्कर हो गया है. बड़ी मुश्किल से यह लाश मिली है. इसे भी आप मना कर रहे हैं. मुझ पर दया करिये. केवल थोड़ा सा आहार का आधार मिल जाये तो मुझे बड़ा सन्तोष होगा. इसकी यदि आँखें खां लूं तो क्या हर्ज है? छोटी सी आंख है. आंख ने क्या पाप किया होगा? योगी पुरुष ने देखकर सियार से कहा "नेत्रे साधु विलोक नेत्रे रहिते," इस आंख ने कभी सन्तपुरुषों का दर्शन नहीं किया. इस की दृष्टि मात्र लोगों के दुर्गुणों पर गई. काक दृष्टि कैसी होती है? कौए की नजर जाती है गन्दगी पर. हमारी दृष्टि का यह विकार हमारे जीवन का विनाश करता है. हर व्यक्ति के दुर्गुण पर ही हमारी दृष्टि जाती हैं ह्यूमन साइकोलोजी है. मानवीय मनोविज्ञान है. आप यदि अपने मकान के अन्दर एक दम ह्वाइट पेपर, सफेद कागज बोर्ड पर लगा दें और मैं उसके बीचों बीच काला बिन्दु रख दूं तो आप सच कहें कि नजर कहाँ जायेगी? बिल्कुल केन्द्र में, सेन्टर में मैंने जहां काला बिन्दु लगा दिया है. सबकी नजर वहीं जायेगी. यह अनादि काल का संस्कार 99 प्रतिशत उसमें एकदम ह्वाइट पेपर है, सफेद कागज है. एक पर्सेन्ट यदि मैंने ब्लैक स्पोट कर दिया, काला निशान बना दिया, नजर उस काले निशान पर जायेगी. 99 प्रतिशत जो निर्मल है, स्वच्छ है, वहां नजर नहीं जायेगी. ___ यही हमारी आदत है, किसी व्यक्ति में हजार गुण हों, वहाँ हमारी दृष्टि नहीं जायेगी. परन्तु जहां जरा सा भी दुर्गुण झलक जाये, हम झट वहीं पर दृष्टि टिका लेगें. अपवाद या अवर्णवाद बोलकर अपनी जीभ गंदी करेंगे और तुरन्त पर-निन्दा के आश्रित बन जायेंगे. योगी पुरूष ने कहा-"नैन साधु विलोक नैनरहिते” इस आंख से कभी साधु पुरुषों का दर्शन ही नहीं किया, परदोष दर्शन में ही इसकी दृष्टि रही. अतः दृष्टि इसकी मलिन बनी रही. कभी प्रभु का दर्शन नहीं किया. विकार से भरी इसकी दष्टि कभी अपने आप को नहीं देखा. हमेशा पर दृष्टि में रहा. लोग क्या करते हैं? यही देखने में जीवन चला गया. मेरे अन्तर जगत् में क्या है? यह देखने का प्रयास ही नहीं किया. अपने को देखने की दृष्टि प्राप्त नहीं की. दष्टि निर्मल होनी चाहिये परमात्मा ने कहा-गिद्ध दृष्टि चाहिये. गिद्ध की दृष्टि बहुत गहरी होती है. बहुत उँचाई से वह अपनी वस्तु को देख लेता है. उसी तरह से हमारे जीवन में दृष्टि होनी चाहिये, वर्तमान में रहकर भी मैं अपने परलोक को देख सकूँ, कल्पना कर सकूँ कि मेरा कार्य मुझे कहाँ पहुँचायेगा. किस प्रकार की मुझे गति मिलेगी. वर्तमान में इस प्रकार से देखना, यह दूरदृष्टि या गिद्ध दृष्टि है. - 244 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy