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गुरुवाणी
मौन रखें तो साधना का संग्रह होता है. कषाय के आगमन का द्वार बन्द हो जाता है. आत्मा, जो क्लेश से पीड़ित है, परम शान्ति का वहां अनुभव प्राप्त करती है. मौन की साधना. बोलना ही नहीं.
स्तोकम् भाषा के आठ गुणों में से एक गुण मैं कल बतलाकर के गया था. किस प्रकार बोलना स्तोकम्. बहुत अल्प. ज़रूरत से अधिक नहीं. जितना विवेक पूर्वक हम पौकेट में से पैसा खर्च करते हैं, बेफजूल एक पैसा खर्च करने का नहीं, एक चीज लेनी होती है, दस दुकान होकर आते हैं, कहां सस्ता मिलेगा? पसीना उतार कर के पैसा पैदा किया है.
ज्ञानियों ने कहा उससे भी अधिक विवेक वाणी के उपयोग में होना चाहिए. एक पैसा भी मेरा गलत न चला जाए, एक शब्द भी मेरा व्यर्थ नहीं होना चाहिए. यह हमारी शक्ति है. शक्ति का अपव्यय नहीं होना चाहिए. बहत प्रचंड शक्ति है हमारी वाणी के अंदर. वर्षों तक ऋषि-मुनि मौन रहते थे. मौन के बाद जब शब्द निकलते, वे शब्द मंत्र बनते थे. वे शब्द फलीभूत होते थे. प्रकृति के अंदर वातावरण में परिवर्तन लेकर के आते थे. उन आत्माओं के शब्दों पर आप दृष्टिपात करिए, उनके व्यवहार को देखिए. बड़ा सौजन्यपूर्ण उनका व्यवहार होता था. ___ महात्मा के पास किसी पुरुष ने आकर के गाली दी, अपशब्द बोला. मौन रहे. दो दिन आया, चार दिन आया, बोल-बोल कर के थक गया. विचार में पड़ गया. यह व्यक्ति बड़ा विचित्र है. पत्थर जैसा है. इतना मैंने इसके साथ दुर्व्यहार किया. पूर्व जन्म का कोई संबंध था. इस जीवन के साथ देखकर के आवेश में आ जाता हूं. गुस्से में आ जाता है. फजूल की बात करके चला जाता. खूब गालियां देता, एक अक्षर नहीं बोलता.
बुद्ध के जीवन की घटना है. राजपुत्र थे, जवान अवस्था थी. अपूर्व सौन्दर्य था चेहरे में. साधना की पवित्रता भी थी. आपको आश्चर्य होगा. स्वयं बुद्ध भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्यों के अंदर उन्हीं की परंपरा में साधु बने. बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा ग्रन्थ “मज्झिम निकाय" उनके त्रिपिटिक होते हैं. मज्झिम निकाय, दिगनिकाय, और सूत निकाम. उस ग्रंथ में उनका ही वर्णन है.
बुद्ध ने स्वयं कहा मैंने जैन. साधु बनकर, बहुत वर्षों तक साधना की घोर तपस्या की. परन्तु मेरा शरीर उसको सहन नहीं कर पाया. जगत के लोग कदाचित इस कठोर साधना को सहन न कर सके, इसलिए मैंने मध्यम मार्ग निकाला. जो अति कठोर न हो, अति कोमल न हो. बीच का रास्ता. उन्होंने एक-एक चीज स्वीकार की. मैंने लोच भी किया, मैंने वर्षों तक साधना की, तपस्या की. मेरे शरीर की हड्डी-हड्डी निकल गई तप के द्वारा.
चारित्रवान थे, इसमें दो मत नहीं. परन्तु विचारधारा से उसके बाद अलग हुए, उन्होंने स्वतन्त्र बौद्धमत वहीं पर पैदा किया. बुद्ध के माता-पिता पार्श्वनाथ भगवान के श्रावक थे.
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