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%-गुरुवाणी
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कभी इस प्रकार का गलत कार्य नहीं करना. पर निन्दा में कभी जाना नहीं. कभी साधु पुरुषों के विषय में गलत बोलना नहीं. अपनी साधुता चली जायेगी. अपनी सज्जनता चली जायेगी. बिना कारण आत्मा कलेश का पात्र बन जायेगी. ऐसे क्लेश में कभी निमित्त नहीं बनना.
बड़े से बड़े व्यक्तियों में भी ऐसा रोग है. पंडितों से लगाकर मूर्ख तक व्यापक है. यह वायरस बड़ा खतरनाक है. किसी कारण से प्रदूषण को लेकर कोई वायरस की बीमारी आ जाए तो एक बार आपके शरीर को नष्ट करेगी. फिर से आप शरीर प्राप्त कर लेंगे, जीवन प्राप्त कर लेंगे.
निन्दा का यदि वायरस आ गया, तो यह अनेक जन्मों की प्रक्रिया, वैर की प्रक्रिया जीवित रहेगी. आप मरते रहें परन्तु आपका वैर अन्दर जीवित रहेगा. वह वैर की परम्परा कटता को जीवित रखने वाला सबसे भयंकर वायरस है - परनिन्दा.
यहां इसका निर्देश है, साधना के क्षेत्र में, परनिन्दा को कैन्सर माना है. एक बार यदि व्यक्ति कैंसर से ग्रसित बन जाए. ऐसी असाध्य बीमारी है. उससे बचना फिर संभव नहीं होता. लाखों में एक व्यक्ति बच पाता है. कोई पण्य बल से. बाकी तो सभी समझ लेते हैं कि नोटिस आ चुका हैं, दिन गिनो.
परनिन्दा को साधना के क्षेत्र में कैन्सर माना गया, और यह बीमारी आपके अन्दर एक बार भी आ गई, इसका इलाज बहुत मुश्किल है. इस बीमारी से बचने का उपाय करें कैसे बोलना? क्या बोलना? इसका विवेक अपने अन्दर होना चाहिए.
प्रकृति ने आपको बड़ी सुन्दर व्यवस्था दी है. मैंने एक बार कहा भी था, आपको शायद याद भी होगा. हमारे शरीर के अन्दर शारीरिक रचना इस प्रकार की है. प्रकृति ने पहले से इसकी व्यवस्था इस तरह से की. आपके दो आंख, दो कान, दो नाक, दो हाथ, दो पांव. कहीं कोई द्वार नहीं. किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं. देखा आपने आंख इतनी कोमल है. परन्तु इसके रक्षण के लिए मात्र एक चमड़े का हलका सा पर्दा. कान के अन्दर कोई पर्दा नहीं. नाक के अन्दर कोई दीवार नहीं. सब अन्दर तक चले जाते हैं, कोई भय ही नहीं.
आपने कभी यह विचार किया इस जीभ के लिए कैसी व्यवस्था है. होंठ का दरवाजा दिया, अन्दर बत्तीस गार्डस् बैठा गए और उसके अन्दर में जीभ रखी गई. बहुत समझ करके मुझे बोलना है, बहुत विचारपूर्वक बोलना है.
विद्वान और मूर्ख में अन्तर कुछ नहीं होता. विद्वान समझ कर, विचारपूर्वक सोचकर बोलते हैं और मूर्ख बोलने के बाद सोचते हैं. और कोई अन्तर नहीं.
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