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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी वास्तविक पानी नहीं होता. बल्कि रेती के कणों के द्वारा एक चमक पैदा होती है, भ्रम पैदा करता है जल का. परन्तु उसमें वास्तविकता नहीं होती. वहां भी उस फर्श के अन्दर ऐसी व्यवस्था थी. आते ही सूर्य के प्रकाश के द्वारा ऐसा भ्रम पैदा हुआ. पाण्डव ज़रा हंसे कि कैसे इनको बनाया गया, अन्दर गये एक दूसरा चौक था. वहां पानी था, परन्तु आपको जरा भी आभास न हो. इस प्रकार की व्यवस्था थी. आपको फर्श ही नजर आए. और जैसे ही कौरव अन्दर गए, उस चौगान में तो कपड़े भीग गए. ये लोग ज़रा हंसे. पाण्डवों के हंसने से उनके मन को ज़रा आघात लगा कि मुझे उन्होंने आमन्त्रित किया और आमन्त्रित करके मेरे साथ ऐसी ठिठोली की. जरा नाराजगी आई कौरवों में. बोलने में ज़रा-सा विवेक चूक गए. गाड़ी चलती हो और जरा ब्रैक लूज हो जाए तो दुर्घटना निश्चित है. जबान चलती हो और विवेक का यदि ब्रेक नहीं लगा और जरा-सा दो-चार शब्द आगे चला गया, शब्द की दुर्घटना निश्चित है. संघर्ष पैदा होगा. भीम ने कह दिया कि ये तो मुझे आज मालूम हुआ कि अन्धे के लड़के भी अन्धे होते हैं. वह आग में घी का काम कर गया. धृतराष्ट्र अन्धे थे. परन्तु बच्चों के अन्दर ऐसी कोई बीमारी नहीं थी. सारे कौरव देखने वाले थे. वह तो एक भ्रम के कारण था. और इनको एक चुहल करनी थी. जरा-सा शब्द का विवेक चूक गए, उसका परिणाम, कौरवों ने प्रतिज्ञा कर ली कि इसका बदला हम लेकर रहेंगे. और याद रखो, तुम्हारी द्रोपदी को मैं जांघ पर बिठा कर अपमानित नहीं करूं तो हम कौरव नहीं. भीम ने प्रतिज्ञा की. गदा उठा कर के कहा कि तुम्हारी जांघ को तोडकर रक्त पान न करूं तो मेरा नाम पाण्डव नहीं. यह संघर्ष का कारण है. अठारह दिन के युद्ध में एक करोड़ अस्सी लाख आदमी मर गए. हमारे देश में महाभारत की घटना जैसी तो अनेक घटनाएं हमारे इतिहास में घट चुकी हैं. बोलने में विवेक रखना चाहिए. नहीं तो आग का काम करती है. पेट्रोल की टंकी तो हर इंसान के पास है. शब्द की चिंगारी लगते ही ज्वाला निकलती है. __ शब्द में चिंगारी नहीं आनी चाहिए. क्रोध या आवेश नहीं होना चाहिए. शब्द में ऐसा माधुर्य चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति को अमृत मिले और उसकी आग भी बुझ जाए. क्षमा को पानी की उपमा दी गई है. शीतल फल जैसा. ऐसी सुन्दर मधुर वाणी यदि आपके पास में हो तो सामने वाले व्यक्ति की क्रोधाग्नि को बुझा सकता है. उसके अन्तर में जो क्रोध की भट्टी जल रही है, वह बुझ जाए. उसकी भी समत्व के अन्दर उपस्थिति हो जाए. उसका समत्व सारे जगत के लिए कल्याणकारी बन जाए. यहां पर सूत्रकार ने यह निर्देश दिया है: “सर्वत्र निन्दासत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषु।" 204 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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