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-गुरुवाणी
हिन्दी में कहा जाता है अरब्बर को कचरा कि ऐसे अटाला. "इधर उधर की दु में भटकने वाला, वह गुलाम व्यक्ति न जाने कहां कहां इच्छा और तृष्णा को लेकर गया और अपनी वासना का गुलाम बना हुआ है तथा जो परमात्मा के स्थान पर सम्राट बनने की कामना रखता है. इधर-उधर भटकने वाला कर्म का अटाला, कचरा पोटला बांध करके परलोक जाता है.
"कवि गंग तो एक गोविन्द भजै, कछु संक न मानत जब्बर की"
यह कवि गंग तो अपना स्वाभिमान लेकर के आया है. सिवाय अपने परमेश्वर के जगत में किसी को याद करने वाला नहीं. श्रद्धा तो मैंने परमेश्वर को समर्पण कर दी है. अंत में ये भटकने वाला व्यक्ति नहीं हैं.
जिसको हर की परतीत नहीं, वो मिल आश करो अकबर की यानि जिसको परमेश्वर पर विश्वास नहीं है वही हजूर आपके दरबार में आयेगा. वही आपका गुलाम बनेगा, और अपनी आशा को पूर्ण करने की कामना से आएगा. ___ वे शब्द ऐसे तीर थे कि अकबर की आत्मा को चुभे और उसने सजा दी कि बात की इसमें तुम फेर बदल करो अन्य को मौत के घाट उतार दिये जाओगे. उस जमाने में जबानी कानून होता था. अंत में कविगंग ने देखा यह निष्ठुर है, यह समझने वाल नहीं, मुं पर थूक दिया, तो भी अकबर अहं के नशे में कहता है अंतिम चान्स देता हूँ फेरबदल कर दो. कवि तो मनके बादशाह हैं, चाहे तो घोड़े पर भी बीप दे, चाहे तो गधे पर. अंत में कवि गंग ने जोरों से अपने स्वाभिमान के प्रति किये कुठरा घात पर उसे वापस छंद बजाकर कहा-अब तू मेरी बात अंतिम सुन ले फिर तुझे करना है सो कर. कवि गंग ने गर्जना पूर्व कहाः
"अकब्बर अकबर नरा हन्दा नर होजा मेरी स्त्री या होजा मेरा वर एक हाथ में घोड़ा , एक हाथ में खर
कहना था सो कह दिया तूझे करना हैं सो कर." अकबर का खून सुनकर खलबला गया और आदेश दिया इसे बड़ी कट्टरतापूर्वक हाथी को शराब पिला करके मदमस्त किया जाये और हाथी के पांव के संग जंजीरों से बांधकर चांदनी चौक में दौड़ाया जाये. ___ यह एक ऐतिहासिक घटना है, चांदनी चौक के सारे लोग देखते रह गये. हाथी को शराब पिलाकर के मदहोश बनाया गया. जंजीरों से कवि गंग को हाथी के पांव से जकड़ दिया गया, और पूरे चांदनी चौक में दौड़ाया गया. कहीं हाथ गिरा कहीं पांव गिरा, शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गये परन्तु उसका स्वाभिमान बना रहा.
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