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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: "हजूर ! मैं बेगम साहिबा के पास गया था. एक सवाल था वह जैसे ही उनसे पूछा इतना आवेश आ गया कि सारी रामायण लेकर चूल्हे में डाल दी. अब हजूर में क्या करूं. वह तो सब जलकर के राख हो गई. अब सवाल आप ही अपनी बेगम से पूछ लेना. हजूर अब मुझे मत भेजना." अलग-अलग आदमियों के अलग-अलग दिमाग अलग-अलग विचार होते हैं. "सब मिल आस करो अकबर की" सब मिलकर के मेरी आशा करो. मैं तुम्हारी आशायें पूर्ण करूंगा. एक ऐसे ही विचार में अभिमान प्रवेश कर गया. वह बादशाह था. इसी बात पर कवि गंग का स्वाभिमान जागृत हो गया. उसने कहा हजूर! यह आपका गलत सवाल है. इसका सही जवाब नहीं मिलेगा. आपने बड़ा गलत प्रश्न कर लिया जो परमेश्वर की मर्यादा है, आपने इसका उल्लंघन कर दिया. इसका जवाब यदि मैं देता हूं तो परमेश्वर का मैं भी गुनहगार बनता हूं आशा तो परमेश्वर से की जाती है जो परम पूर्ण हैं. आप तो स्वयं कर्म के गुलाम बनकर के आये है. आप तो स्वयं अपनी इन्द्रियों और वासनाओं के गुलाम हैं. आप क्या हमें मुक्त कर पायेंगे अथवा हमारी इच्छाओं को क्या पूर्ण कर सकेंगे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कवि गंग के ये शब्द ऐसे प्रहार करने वाले शब्द थे कि बहुत बड़ी चोट लगी. उसका स्वाभिमान टूटने लगा और कहा करना होगा. तुम मेरे नौकर हो." वह स्वाभिमानी कवि था किसी का अंकुश नहीं चलता. उसकी कलम को जगत में कोई देखने वाला नहीं, हजूर आपकी तलवार और मेरी कलम दोनों शक्ति समान है." अकबर की अन्तर्चेतना को - "मैं जो कहता "मैं जो कहता हूं तुम्हें कहाः "कवियों के ऊपर 189 — अकबर ने कहा तुम विद्वान हो, समझदार हो. मैं जो कुछ कहता हूं उस पर जरा विचार करना और समझकर कार्य करना. इसका स्पष्टीकरण करो, मेरी समस्या का समाधान करो वर्ना अनर्थ हो जाएगा. कवि गंग ने कहा हजूर आप को सुनना है तो मैं सुना दूं. For Private And Personal Use Only एक को छोड़ दूजे को भजे, रसना कटो उस लब्बर की अब की दुनिया गुनिया को भजे सिर बांध पोट अट्टब्बर की कवि गंग तो एक गोबिंद भजे, कछु संक न मानत जब्बर की जिस को हट की परतीत नहीं वो मिल आशा करो अकब्बर की कवि का स्वाभिमान इस तरह जागृत हुआ कि उसने खड़े होकर के कह दिया, हजूर आप विचार करना एक को छोड़ दूजे को भजै", रसना करे उस लब्बर की एक परमेश्वर को छोड़ करके दूसरे को याद करने वाला या जगत की याचना करने वाला, ऐसे लब्बर नारायण की जीभ कट जाये. जो परमेश्वर को भूलकर के जगत को याद करे, इच्छाओं, तृष्णाओं का गुलाम बनकर के देवी देवताओं के पीछे भटकता फिरे ऐसे व्यक्ति की जरूरत नहीं है.
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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