________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
1C
www.kobatirth.org
गुरुवाणी
अगर यह दीवार और दरवाजा मैं बना देता तो यह मुझको न मिलता. यह धर्म नियम का पुण्य प्रभाव, चातुर्मास में कोई ऐसा आरम्भ समारम्भ नहीं करना, जिससे जीवों की विराधना हो. मैं अपनी धर्म साधना में वफादार रहा. प्रामाणिक रहा और गुरु भगवन्त के चरणों में रहा, इसलिए अपना प्रारब्ध साथ देकर गया.
जहां व्यक्ति विश्वास पूर्वक कार्य करेगा तो विश्वास की परिणति के रूप में सफलता तो निश्चित मिलेगी. परन्तु आदत से लाचार ज्यादातर व्यक्ति जगत को प्राप्त करने के लिए जगतपति परमेश्वर की उपेक्षा करते हैं.
+
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पहली शर्त यह है कि हमारे मन में विश्वास और श्रद्धा आनी चाहिए बिना प्रारब्ध के जगत में कोई देने वाला नहीं. कोई भी देवता लाकर के आपको कोई चीज नहीं देने याला आप भले ही जिन्दगी भर भटकते रहें, परन्तु कुछ नहीं मिलेगा. भगवान ने आध्यात्मिक भाषा में कहा कि इच्छा और तृष्णा से कुछ नहीं मिलेगा. इससे मात्र कर्म-बन्ध ही मिलेगा.
"इच्छा आगाससमानन्ता”
आकाश के समान हमारी इच्छाएं और तृष्णाएं अनन्त हैं, इसमें कभी पूर्णता आने वाली नहीं क्योंकि इच्छाएं कभी भी तृप्त होने वाली नही हैं. आज तक जगत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जो अपने जीवन में अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर के मरा हो, अपूर्ण अधूरी इच्छाएं लेकर के हम संसार से जाते हैं. सिवाय कर्म की मार के और हमें यहाँ कुछ नहीं मिलता.
सर्वप्रथम आवश्यकता इस बात की है, हम अपने अन्दर सम्यग्दर्शन के पथ पर अग्रसर होते हुए उस परम सत्य का वरण करें, जिससे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सके और हमारे सम्पूर्ण दुःखों से हमें मुक्ति मिल सके. परन्तु समस्या ज्यादा प्रबल रूप तब धारण करती है जब हम आपत्ति की जरा सी भी कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते और हमारा चित्त विचलित हो उठता है उस अशान्ति की स्थिति में परमात्मा की कल्पना ही निरर्थक है.
जिस दिन आपके मन में यह दृढ़ता आ जाएगी कि मुझे परमात्मा के सिवाय जगत में और कुछ भी नहीं चाहिए ये जगत की सारी वस्तुएं उसके प्रतिफल में, आपके चरणों में आकर गिरेंगी.
परन्तु हममें वह विश्वास कहाँ? एक बहुत बड़ा जौहरी परमात्मा के प्रति पूर्ण विश्वास रखने वाला, बम्बई कलकता जैसे नगरों में बड़ा व्यापार करता था. वह दलाली का काम करता था. परन्तु जब भी घर से बाहर निकलता परमेश्वर का स्मरण करके जाता. वह बड़ा प्रामाणिक व्यक्ति था कभी गलत मान्यता नहीं और नहीं गलत विश्वास.
आज तो सारा ही जीवन अन्ध श्रद्धा पर चल रहा है. रास्ते चलते अगर कुछ मिल गया तो नमस्कार. नमस्कार उत्तम अंग है. वह कहां नमाया जाता है, किस जगह नमाया
186
For Private And Personal Use Only