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गुरुवाणी
श्रेणिक की आंख खुल गई. राजा में ये ताकत नहीं और प्रजा में ये ताकत कहां से आई. जब बुलाकर पूछा कि शालीभद्र कौन है. पता चला कि नगर का सबसे धनवान व्यक्ति है. उसे बुलवाने को कहा.
"राजन् ! जिन्दगी में वह कभी घर से नीचे उतरे ही नहीं. आप को यदि मिलना है तो आप उनके घर जा सकते हैं."
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यह इतिहास का पहला प्रसंग था कि राजा अपनी प्रजा के घर मिलने गया, कैसा पुण्य का आकर्षण. श्रेणिक के अन्दर भी विचार आया, भावना जागृत हुई. इतना बड़ा मगध का साम्राज्य और उस का मालिक अपनी प्रजा के यहां जाए.
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शालीभद्र की मां ने कहा राजन, वे तो सातवीं मंजिल पर हैं. नीचे आने में असमर्थ हैं. आप ऊपर जा सकते हैं वह ऊपर से नीचे भी नहीं उतरा शरीर क्या मक्खन जैसी कोमल काया थी. पान खाने को चरित्रकारों ने वर्णन किया है कि पान गले से नीचे उतरती हुई दिखती.
सम्राट ऊपर गया. जब उसे देखा, उसकी सुन्दरता देखी, उसका वैभव देखा तो सम्राट श्रेणिक ने आलिंगन किया. सम्राट के आलिंगन से उसको इतनी गर्मी लगी कि वह शरीर में पसीना-पसीना हो गया. उस पुण्यशाली आत्मा को भी शरीर छोड़ने में एक मिनट लगा.
एक क्षण के अन्दर अन्दर अरबों की सम्पत्ति का परित्याग कर दिया, सारी रानियों का परित्याग किया. भोग का परित्याग करके वह कैसा परम त्यागी बना राजग्रही नगर में दो उपवास के बाद एक बार आहार करता. उसका सारा शरीर क्षीण हो गया. पादोपगम अनशन करके वह तो अनुतरवासी विमान में चला गया. इस प्रकार वह एक भव अवतारी आत्मा थी. एक भव करके मोक्ष में जाने वाली आत्मा.
हम रात दिन चरित्रों में उसका वर्णन करते हैं. हर दिवाली में उन्हे याद करते. आज तक आपने पुस्तक में लिखा 'धन्ना' शालीभद्र की ऋध्दी हो जो खाली पेटी भी निन्यानवें आई हैं. वहां तो भरी हुई पेटियां आती थी. यहां तो खाली भी जाएं तो भी धन्यवाद कभी लिखते समय यह नहीं लिखा कि धन्ना शालीभद्र का त्याग हो जो त्याग से समृद्धि का जन्म होता है उस त्याग से पुण्य का जन्म होता है. अर्पण के अन्दर प्राप्ति छिपी हैं अर्पण की भावना आ जाए, फल की प्राप्ति सहज ही हो जाएगी.
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परन्तु यह तरीका आपको मालूम नहीं कि मैं जो देता हूं तो वह पुण्य आत्मा ग्रहण करती है. इसलिए सूत्रकार ने इस पर जोर दिया:
"दीनाभ्युध्दरणादरः"
ऐसी दीन आत्माओं का हाथ पकड़िये, उन आत्माओं की सेवा कीजिए, जिसे परमात्मा स्वीकार करे, उस की आशा अनुसार हो, जिससे हृदय में परिवर्तन आ जाए. सद्भावना
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