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गुरुवाणी
बालक के मन में विचार आया कि मेरा कैसा पुण्योदय हुआ कि यह सुन्दर निर्दोष वस्तु मेरी माँ ने बनाया और मुझे अपने पुण्य के प्रतिफल में इसको किसी साधु को देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. बड़े-बड़े समृद्ध लोगों के घर साधु नहीं आते. यदि कोई मंगल भावना हो तभी ऐसा संयोग मिलता है.
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बालक कहता है महाराज यह आप शुद्ध आहार लें. प्यार से बनाया हुआ द्रव्य था. उसका स्वाद भी अलग होता है. बड़े प्रेम से अर्पण किया. सब का सब डाल दिया. मुनिराज आशीर्वाद देकर के चले.
संयमी आत्माओं के संयम में सहायक बनना बहुत बड़ी मंगल क्रिया है
बालक सोचता है, वह दूध मेरे पेट में जाता तो ज़हर उत्पन्न करता, मैं संसारी हूं, वासना से घिरा हूं आज नहीं तो कल विषय वासना को उत्पन्न करता एक संत के पेट में गया, उसकी साधना में सहायक बनेगा उनके पेट में जाकर यह जहर अमृत होगा. उस बालक की ऐसी मंगल भावना थी.
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मां पड़ोस से आई, देखिए उसकी गुप्तता कितनी कि मैंने तो साधु को सारी की सारी खीर दे दी, मैंने तो लिया ही नहीं. मां यह देखकर के मुझे डांटेगी. अकारण मुनिराज के लिए गलत बोलेगी और निन्दा करके पाप में डूबेगी. मां का मैं रक्षण करूंगा मां को बतलाने के लिए उस बालक ने थाली चाटना शुरू कर दिया ताकि मां को सन्तोष हो जाए कि सारी खीर मैंने पी ली. अब थाली चाट रहा हूं,
दान की गुप्तता देखिए वह मंगल भावना ही इस गुप्तता का चमत्कार है, वहां ऐसे प्रबल पुण्य के फलस्वरूप वह बालक मृत्यु के उपरान्त सबसे धनवान व्यक्ति गौभद्र सेठ के यहाँ जन्मा और वह ऐसा पुण्यशाली की उसके जूते ही पूरे भारत की खरीद के लिए पर्याप्त थे. गौभद्र सेठ की मृत्यु हुई तो वे स्वर्ग में गए. परन्तु बालक के प्रति इतना अनुराग जिसके कारण प्रतिदिन देवलोक से जवाहरात आभूषणों से भरी हुई बन्द पेटी भेजते.. अलग-अलग प्रकार की चीजें उसके अन्दर भरी, वह अपने पिता की पुत्र के प्रति स्नेह के कारण भेजते.
इसीलिए मैं कहूंगा कि इस परोपकार साधु-सेवा की मंगल भावना को कभी आप मूर्च्छित मत होने देना. यह तो सतत् जागृत होनी चाहिए. ऐसे अवसर की तलाश होनी चाहिए कि आप दूसरे के लिए कुछ कर सकें. अपना परित्याग कर सकें.
एक राजा सवा लाख सोना मुहर के मूल्य का रत्न जडित कम्बल नहीं खरीद सका. जब व्यापारी के पास गया तो मूल्य जानकर पीछे हट गये परन्तु रानी के आग्रह पर उस व्यापारी को बुलाकर रानी ने पूछा रत्न जड़ित कम्बल किसको बेचा तो उसने कहा साहब मेरे पास जितने कम्बल थे सब शालीभद्र सेठ ने खरीद लिए."
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