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गुरुवाणी
कि समस्या तो हमारे अन्दर है. समाधान बाहर कहां से मिलेगा. इसलिये ज्ञानियों ने कहा कि समस्या का हल अन्दर में ही खोजना.
"जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।”
जो व्यक्ति खोज में स्वयं को निमग्न कर लेगा. उसकी खोज निश्चित पूरी हो जाएगी. परन्तु हमारी खोज में अधूरापन रहता है. उस खोज की गहराई में हम अपने को उतार नहीं पाते. जब तक उस खोज में स्वयं को नहीं खोयेंगे और जगत् में शून्य नहीं बनेंगे तब तक वह खोज कभी पूरी होने वाली नहीं.
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परमात्मा को पाने की वह प्यास अभी तीव्र नहीं हुई है और जिस दिन उसमें तीव्रता आ जाएगी, उस प्यास में भी गहराई आ जाएगी. प्यास में स्वयं को पाने की रुचि पैदा हो जाएगी. उस प्यास में जब प्राण प्रश्न बन जाएगा. परमात्मा स्वतः आपको मिल जायेंगे.
एक महात्मा से किसी व्यक्ति ने कहा- मुझे परमात्म दशा का अनुभव करना है. बहुत सारे ग्रन्थ पढ़े, बहुत सारे व्यक्तियों से मुलाकात की. बड़े-बड़े दार्शनिक मुझे मिले, सभी ने शब्दों में परिचय दिया. परमात्मा के अस्तित्व और सौन्दर्य के सैद्धान्तिक पक्ष से परिचित कराया, परन्तु किसी ने मुझे अभी तक व्यवहार में नहीं बतलाया है, जिसकी मुझे जिज्ञासा परमात्मा है या ऐसा कौन सा तत्व है, क्या आप जानकारी दे सकेंगे ?
महात्मा बहुत अच्छे सिद्ध पुरुष थे. वह गंगा किनारे अपने आश्रम में रहते थे. बड़ी मस्ती में थे. जगत् की कोई परवाह नहीं थी. परमात्मा की भक्ति का ऐसा नशा है कि एक बार यदि आ जाये, सब कुछ भुला देता है, संसार से आत्मा को शून्य कर देता है. परमात्मा भक्ति का नशा परम आनन्द ही आनन्द देता है, इसकी कोई गलत प्रतिक्रिया नहीं होती.
उस व्यक्ति के निवेदन पर महात्मा ने कहा चलो, तुमको परमात्मा की अनुभूति करनी है, दर्शन करना है, मैं कराता हूं. परमात्मा को पाने की प्यास तुम्हारे अन्दर लगी है परन्तु परमात्मा कभी तर्क से नहीं मिलता. तर्क के जंगल में यदि चले जायेंगे तो स्वयं को खोजना बहुत मुश्किल हो जाएगा:
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“शब्दजालंमहारण्यं, चित्तभ्रमणकारणम्"
आद्य शंकराचार्य का कहना है, ये तर्क तो जंगल हैं. यदि आप उसमें आत्मा को खोजने के लिए निकले तो स्वयं को ही भूल जाएंगे. आप स्वयं को ही खो बैठेंगे. कुछ नहीं मिलेगा. चित्त में भ्रम उत्पन्न कर देगा. तर्क के जाल में कभी उलझना मत. यह खोज का सही तरीका नहीं है. पर हमारी यह आदत है कि हर चीज़ में हम तर्क करेंगे. परमात्मा का स्मरण करने या जप करने आ जाएँ. परन्तु वहां विश्वास का अभाव है.
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आप डाक्टर के पास कभी तर्क करते हैं, उससे कोई गारन्टी लेते हैं कि आप्रेशन करवाऊंगा तो मैं बिल्कुल सुरक्षित आ जाऊंगा ? कभी डाक्टर ऐसा विश्वास दिलाता है.
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