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चया Re
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गुरुवाणी
ऐसे कितने व्यक्ति इस दुनिया में होंगे. यह दृश्य देखने के बाद मेरा हृदय पिघल गया और मैंने सोचा कि हम तो भोजन कर लेते हैं, पेट भर जाता है, अपने लिए तो दुनिया दीवाली नज़र आती है और कितने व्यक्ति बेचारे भूख से अपना जीवन व्यतीत करते होंगे, कितना दर्दनाक उनका जीवन होगा, कैसी-कैसी परिस्थिति में बेचारे जीवन पूरा करते होंगे और सहधर्मी बन्धुओं के लिए हमारा ज़रा भी लक्ष्य नहीं. दीन-दुःखी आत्माओं के लिए ज़रा भी दया नहीं. यह कमाया हुआ पैसा किस काम का ? यह तो विष है, मार डालेगा. इसे परोपकार के द्वारा अमृत कैसे बनाया जाये.
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हमारा शिष्ट आचार होता है. ऐसे दीन आत्माओं का दुःखी आत्माओं का उद्धार करना, उनका हाथ पकड़कर के उनको खड़ा करना, अपनी बराबरी में लाने का प्रयास करना. यह सबसे महान् पुण्य कार्य है परमात्मा को प्रसन्नता मिलती है, अनुग्रह मिलता है क्योंकि उनकी आज्ञा का इसके द्वारा पालन होता है, परमेश्वर की आज्ञा का पालन ही वास्तविक पूजा है. उनकी आज्ञा का आदर करना सम्मान करना और उनके अनुसार जीवन व्यवहार का पालन करना भाव पूजा है.
ऐसी परिस्थिति आ कोई भयंकर पापी आत्मा प्रकट नहीं हो रही है. इसे
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जाए और यदि हृदय में भावना जागृत न हो तो समझ लेना कि हूं, कोई ऐसा पाप कर के आया कोई ऐसा पाप कर के आया हूं जो मेरे अन्दर यह भावना नैतिक दृष्टि से प्रथम कर्त्तव्य माना गया.
भगवान ने कहा जिस आत्मा में करुणा नहीं, जिस आत्मा में वात्सल्य नहीं, जिस आत्मा में दीन दुःखियों के लिए प्रेम नहीं, प्यार और अनुराग नहीं, उस व्यक्ति के जीवन का मूल्य ही क्या, वह तो पशु से भी गया- बीता है उससे तो पशु भी लाख गुणा अच्छे हैं. गाय को देखिए, आप उसे घास खिलाते हैं और बदले में वह दुग्ध देती है. पशु कितना परोपकार करता है जिन्दगी भर आपके लिए सर्वस्व देता है और मरने के बाद भी अपना चमड़ा और हड्डी तक आपके लिए देता है.
मनुष्य क्या देता है
"ते मृत्युलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति । *
कवि ने कहा कि हमारा जीवन इस पृथ्वी पर भार रूप बन गया है. ऐसा कोई कार्य हमने अपने जीवन में नहीं किया, जिससे हमारे मन को शांति मिले प्रसन्नता मिले. जीवनपर्यन्त लाभ-लाभ करते रहे और जहां लाभ-लाभ करेंगे, वहां भगवान राम कैसे मिलेगा ? बिना राम को याद किए यह भावना कहां से आएगी. अन्दर से राम की करुणा कैसे बरसेगी राम जैसा दयालु हृदय कैसे बनेगा ? हमारे अन्दर महावीर की अन्तः करुणा कहां से प्रकट होगी ?
जीवनपर्यन्त वे करुणा मन्दिर, दया की प्रेरणा देते रहे धर्म का आधार जिस करुणा को माना, जिस दया को माना कि नहीं, इंसान की सेवा ही मेरी सेवा है, प्राणिमात्र की
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