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गुरुवाणी
आश्रम का धर्म है, यही समझकर के इसका उपयोग करना. संतान प्राप्ति के लिए ही यह संबंध होता है, इसके आगे इसका कोई प्रयोजन नहीं. विषय के पोषण के लिए नहीं. समष्टि की तरह उसका उपयोग करना ताकि आत्मा के लिए वह हानिकारक न बने. वर्तमान काल बड़ा दुःखद है, यह तो भूतकाल की बातें मैंने आपसे कही. हमारे इस वर्तमान में आप झांककर के देखिए:
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हर व्यक्ति का जीवन दुराचार की गंध से भरा हुआ है. कहां से सदाचार उसके अन्दर प्रगट होगा. कहां से वह साधना उसके अन्दर सक्रिय बनेगी. मैंने कल ही कहा था जो तीर्थंकरों को जन्म देने वाली माता, अवतारी पुरुषों जैसे राम और कृष्ण को जन्म देने वाली माता है. उन माताओं का यदि आप अभिनय करें अपमान करें, उनके अंग प्रदर्शन का यदि आप विषय वासना से निरीक्षण करें, वह आत्मा में साधना फलीभूत कैसे होगी? वे धर्मबीज, वहां वृक्ष कैसे बनेगा ? मोक्ष का फल देने वाला कैसे बनेगा ? कभी नहीं माँ रूपी उस नारी को घोर अपमानित किया जा रहा है.
स्त्री जाति को विषय का साधना मान कर के चल रहे हैं. जगज्जननी माताओं के साथ यदि ऐसा व्यवहार किया गया तो व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो पाएगा. धर्मशास्त्रों ने निर्देश दिया है और पुराण और उपनिषद ने भी स्त्री जाति का कितना बड़ा सम्मान किया है. इसीलिए मैंने कल कहा था कि जहां नारी जाति का सम्मान किया जाये, मां के रूप में उसे स्वीकार किया जाये तो वह जगत् स्वर्ग बनता है. वहाँ दुष्काल नहीं आएगा. प्रकृति का प्रकोप नहीं आएगा. दुर्भिक्ष नहीं पड़ेगा. वहां इस प्रकार का रोग व्यापक नहीं बनेगा. वे परमाणु इतने शुद्ध होंगे, विचार इतने सुन्दर होंगे कि वातावरण परिवर्तित कर देंगे.
परन्तु वर्तमान स्थिति बड़ी नाजुक है यह रोग घर घर तक पहुंच चुका है, जो साधन व्यक्तियों में चरित्र के निर्माण के लिए होने चाहिए, नैतिक दृष्टि से जीवन के उत्थान के लिए होने चाहिए, उन साधनों का, रेडियो या दूरदर्शन का कितना घोर दुरुपयोग आज किया जा रहा है.
आपकी आंख में और कान में रोज़ विष डाला जा रहा है, वह संतान क्या करेगी. उस संतान के भरोसे यह देश कैसे चलेगा? पहले ही अपनी मानसिक दृष्टि से दुराचार के रोग से घिरा हुआ जीवन राष्ट्र का क्या रक्षण करेगा? अपने जीवन का जो रक्षण नहीं कर सकता, वह राष्ट्र का क्या रक्षण करेगा ?
गुजरात की एक बहुत छोटी-सी घटना है. अंग्रेजों के समय एक शूरवीर तलवार लेकर के जब युद्ध में गया. युद्ध का संचालन करने वाला अंग्रेज़ कमाण्डर था और जब उसने चावड़ा को देखा, वनराज चावड़ा को दोनों हाथों से युद्ध में तलवार चला रहा था. बड़ा बहादुर था, बड़ा शूरवीर था. आज भी गुजरात उसे बहुत याद करता है, किसी प्रकार
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