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-गुरुवाणी
पुरुषों के प्रति आदर आ जाए, सद्भाव आ जाए, परमात्मा के प्रति यदि पूज्य भाव आ जाये तो वह अशुभ कर्मों का निवारण कर लेता है और वहां जैसे ही अशुभ कर्मों की दीवार टूट जाये, वहां पुण्य का जन्म होता है, और जैसे ही पुण्य पुष्ट बना, अनुमोदना के द्वारा वे पुण्य आपकी हरेक भौतिक क्रिया में सहयोग देने वाले बनते हैं. ___ लोग चमत्कार के पीछे भटकते हैं. बिना सदाचार के चमत्कार आ ही नहीं सकता. इसीलिए मैं कहूंगा कि आप भटकना ही बन्द कर दें. स्वयं की शक्ति का ही विकास प्राप्त करें. एक पत्नी-व्रत के अन्दर, पूर्ण सदाचारी जीवन जीने का प्रयास करें. गृहस्थ जीवन की साधना में भी शक्ति है.
एक घटना हमारे जैन धर्म के इतिहास की है. एक सज्जन शादी करने गये थे. लग्न का समय था. शादी के अन्दर फेरा फिराया जा रहा था. फेरा फिरते-फिरते मन के अन्दर वैराग्य आ गया. यह चतुर्मुखीरूप संसार - मनुष्य गति, तिर्यञ्च गति, नरक गति, स्वर्ग गति. संसार चतुर्गतिरूप है और चार-चार फेरा मुझे फिरना पड़ता है. तीन फेरे तक पुरुष आधा रहता है और चौथे फेरे में तो आपको मालूम ही है. जीवन-पर्यन्त श्रीमती के आदेशों का अनुपालन करना होगा. कैसी विचित्रता है हमारे नियमों की कि सांसारिक नियमों की भी बड़ी विशेषता है. सांसारिक प्रतिक्रिया में भी बड़ी विशेषता है. यदि वैराग्य भाव आ जाए तो, चतुर्मुख रूपी संसार – चार फेरों में फिर जाए. जगत् का बन्धन स्वीकार कर लें, यह वैराग्य भावना कि मैं कहां आ गया हूं. सावधान होने के बाद भी असावधान हो कर आया और यहां जगत् की ग्रन्थि मैंने बांध ली. जिस संसार के नाश के लिए मेरा जन्म हुआ और फिर से मैं संसार पैदा कर रहा हूं. ऐसा वैराग्य आ गया कि वह शादी करने गया था. फेरा फिर रहा था और उस लग्न-मण्डप के अन्दर कैवल्य ज्ञान प्रकट हो गया. केवली बन गये. गये थे शादी करने और केवली बन गये, सर्वज्ञ बन गए. विचार का वैराग्य ऐसा प्रचण्ड हो जाए. मन से यदि साधु बन जाएं तो ज्ञानियों ने कहा कि यह संसार आपके लिए स्वर्ग बन जाये. ये सारी साधना आपके जीवन में सुगन्ध भर देगी. संसार में रहें लेकिन अलिप्त रहकर. यदि आप पानी की बाल्टी में हाथ डालें - क्या पानी चिपकेगा? स्लिप हो जाएगा. वैराग्य के तेल से यदि आत्मा का मर्दन कर दिया जाये. फिर यदि संसार में भोग के कीचड़ में गिर जायें – लिप्त नहीं बनेगा - अटेचमेंट नहीं होगा, अनासक्त रहेगा. घर के अन्दर गर्म दूध की और चाय की तपेली जब आप उतारते हैं. इसे सीधे स्पर्श नहीं करते. बीच में संडासी रखते हैं - अप्रत्यक्ष कि कहीं ऐसा न हो कि इसकी गर्मी मेरे हाथ को जलाये.
संसार के अन्दर भोग का प्रयोग भी ऐसे ही करना है. वैराग्य की संडासी बीच में रखनी. है प्रत्यक्ष नहीं, अप्रत्यक्ष रूप से. आत्मा से संबंध नहीं, विचारों से कोई मेल नहीं, ठीक है संसार है. परिजनों का पालन-पोषण करना मेरा नैतिक कर्तव्य है, इस गृहस्थ
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