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-गुरुवाणी
कर के देखें, क्या आपत्ति है. वैसे भी तो यह शरीर सड़ा हुआ है, जल जाएगा, राख । बन जाएगा. अगर मैं प्रयोग कर लूं तो क्या आपत्ति है.
संत का मार्ग-दर्शन मिला. सिपाहियों से निवेदन किया कि भई जहां महाराज स्नान करते हों, और जिस नाले में से जल गिरता है, मुझे जरा उसके नाले के नीचे बैठने दो, मैं वहां बैठकर स्नान करना चाहता हूँ. सिपाहियों ने कहा कि यह कौन सा पागलपन है. उससे क्या होगा. उसने कहा - नहीं भाई ! मेरी इच्छा है. सिपाहियों को दया आई. छूट दे दी और वह बराबर उस नाले के नीचे स्नान करने लगा. दो दिन, पांच दिन, दस दिन, इक्कीस दिन तक वह बैठा और उस जल से स्नान किया. बड़ा आश्चर्य होगा - सारे रोग उसके दूर होते चले गए. घाव सूख गये, और इक्कीस दिन के बाद वह व्यक्ति ऐसा दीखने लगा कि जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं.
उसने महात्मा के पास जाकर के निवेदन किया कि महात्मन् ! आपने यह कौन सा उपाय मुझे बताया समझ में नहीं आया. महाराणा कोई मन्त्र-तन्त्र नहीं जानते. न ही महाराणा कोई साधु-सन्त हैं, तो यह क्या विशेषता है?
उन्होंने कहा, तुम समझे नहीं ! अरे वह एक पत्नी-व्रत का नियम लेने वाली सदाचारी आत्मा है और उस ब्रह्मचर्य की, उसके अन्दर इतनी प्रचण्ड शक्ति है.
एक पत्नी-व्रत का यह परिणाम कि अगर उसके शरीर से स्पर्श किया हुआ जल कोई यदि पी ले तो वह औषधि का काम करेगा. शरीर के अन्दर विद्युत होती है. बड़ी तेज़ गर्मी होती है. पानी का स्वभाव है, विद्युत को बहुत जल्दी ग्रहण करता है, वह और यदि जल शरीर से स्पर्श करके नीचे उतर जाए तो वह औषधि का रूप ले लेता है और यदि उसके द्वारा कोई व्यक्ति स्नान करे, उसका प्रयोग करे तो आरोग्य मिलता है. उस परमाणु में इतनी ताकत होती है. उस जल के अन्दर औषधि है, गुण उसके अन्दर प्रकट होता है. शरीर से निकलने वाला परमाणु, शरीर से बहने वाली विद्युतधारा, उस जल के अन्दर इतना परिवर्तन ले आती है.
हमारे यहां जैन इतिहास की घटना में भी ऐसा वर्णन आता है. उदयपुर के पास बहुत बड़ा तीर्थ है - माण्डवगढ़ जैन तीर्थ. एक समय में वह एक बड़ा राज्य था, राज्य का केन्द्र-स्थान था और हमारे पेथडशाह जैन, वहाँ के महामन्त्री थे. राजा को ऐसी भयंकर बीमारी हई. बहुत उपचार किया, इलाज किया परन्तु बीमारी गई नहीं . बहुत पीड़ित था. मन से बहत व्यथित था. अपने राजदरबारियों से उसने कहा कि भाई कोई उपचार किया जाये. बाहर से किसी अच्छे वैद्य को बुलाया जाये.
किसी व्यक्ति ने कह दिया कि यहां जो आपके महामन्त्री पेथडशाह है यदि उनकी चादर लेकर के आप दस-पांच दिन ओढ़ें तो मुझे विश्वास है, कि आपकी बीमारी चली जाएगी. आदेश गया. राजा ने पेथडशाह के यहां कहलाया कि ओढ़ने का चादर मुझे चाहिए.
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