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गुरुवाणी
की अग्नि नहीं पहुंची. हर घर जलता हुआ नज़र आएगा. हर व्यक्ति अन्दर से पीड़ित नजर आएगा, क्योंकि वहां वह जीवन उसकी मर्यादा के विपरीत है.
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सदाचार को हमारे यहां एक अमूल्य निधि माना गया है:
"प्राणभूतं चरित्रस्य परब्रह्मैक कारण*
कलिकाल सर्वज्ञ ने कहा कि हमारे जीवन के अन्दर चरित्र को प्राण माना गया और प्राण शून्य आपकी साधना जीवन में कभी सुगन्ध नहीं देगी, वह दुर्गन्ध से भरी हुई मिलेगी.. हमारा वर्तमान जीवन विषयों की दुर्गन्ध से भरा हुआ है. यह अनादि काल का संस्कार है. चारित्र के अभाव में आप कितना भी प्रयत्न करें, वह दुर्गन्ध, सुगन्ध में रूपान्तरित होने वाली नहीं.
कुछ ऐसे अशुभ निमित्त आज मिल रहे हैं. दिन और रात उसी वातावरण में हम रहते हैं. इस वातावरण का हमारे मन पर असर पड़ता है. एक समय ऐसा था जब सदाचार का कितना बड़ा मूल्य था. जीवन में नैतिकता का कितना मूल्याकंन किया गया है.
आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारे इतिहास में देखने को मिलता है उदयपुर स्टेट में हिन्दुकुल भूषण चारित्र्य संपन्न महाराणा गोपाल सिंह थे, जिनका एक पत्नी व्रत का नियम था. कठोर प्रतिज्ञा थी उनके जीवन में महाराणा थे, विचार से स्वतन्त्र थे. धन सम्पत्ति की कमी नहीं थी. सारे हिन्दू जगत का सम्मान उन्हें मिला था, परन्तु अपनी धार्मिक मर्यादा में रहकर, एक पत्नी व्रत का नियम उन्होंने ले रखा था. विचारों में इतनी पवित्रता और सदाचार के इतने सुन्दर समन्वय की परिणति के अवबोध के लिए इतिहास साक्षी है. वह है मेवाड़ का इतिहास और उसकी एक अपूर्व घटना.
एक महात्मा पुरुष उदयपुर आए. एक कुष्ठी व्यक्ति जिसका सारा शरीर कोढ़ से गिर चुका था, उनके दर्शन की अपेक्षा से उनके पास गया, चरण-वन्दन किया और कहा कि भगवन् ! मैं बहुत भयंकर रोग से पीड़ित हूं और यह कुष्ठ की व्याधि इतनी खतरनाक है कि गांव वाले भी मुझसे घृणा करने लग गये परिवार वालों में भी मुझ से घृणा है. मेरा विचार है कि मैं इस शरीर का अन्त कर दूं. अंतिम इच्छा ले कर के आया हूं. यदि आपका आशीर्वाद मिल जाये तो मैं रोग से मुक्त हो जाऊं इस भावना से मैं आपके पास दर्शन को आया हूं.
महात्मा ने कहा- मेरे पास आने की जरूरत ही क्या है ? अगर तुझे आरोग्य चाहिए. तो महाराणा राजमहल में जहाँ स्नान करते हैं उनके गौमुखी के नीचे बैठकर स्नान करो तो तुम्हार रोग नष्ट हो जाएगा. पहले जल निकासी के लिए पृथ्वी के नीचे से नाली नहीं होती थी और जल के लिए ऊपर से गौमुखी जैसा निकास होता था.
बड़े विचार में पड़ गया कि इनके पास कोई आशीर्वाद नहीं, कोई जड़ी-बूटी नहीं और बहुत अच्छा उपाय इन्होंने बता दिया. तो ठीक है संत पुरुषों का वचन है. प्रयोग
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