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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी करते हैं. पूरे संसार का वज़न उठा करके चलते हैं. गुलामी नज़र नहीं आती. चालीस वर्ष से साठ वर्ष तक हमारी क्या स्थिति होती है. कैसी मजदूरी करनी पड़ती है. संसार का यह श्रम कभी वैराग्य नहीं देता. जैसे ही साठ वर्ष के हो जाएं और लड़के होशियार हो जायें. बुद्धिमान हों. चाबी ट्रांसफर हो जाए. दुकान आफिस संभालने लग जाएं. शरीर से कमज़ोर हो जाएं, पांव जवाब दे दें. आंख में रोशनी कम हो जाए. दांत ट्रांसफर हो जाएं. खाना पचे नहीं. बच्चे दुकान में पहुंच जाए. उनके हाथ में सारा कन्ट्रोल आ जाए. ऐसी लाचारी में क्या दशा हो ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साठ से लगाकर अस्सी तक, घर में कहां जगह मिलती है, कभी सोचा ? कहां बैठते हैं ? दरवाजे पर बच्चों को खिलाओ, दरवाजे पर रहो, चौंकीदारी करो. समय होगा थाली में खाना आ जाएगा. वह जगह किसकी है? बोलने की ज़रूरत नहीं, आप जानते हैं ? जो वरदान लिया गया, उसी का यह परिणाम कि वृद्धावस्था में वही जगह मिलेगी. तब भी कभी वैराग्य आया. कभी जीवन में जागृति आई. यह तो ट्रांसफर होता है. लोग कहते हैं - स्वतन्त्रता चाहिए, आजादी चाहिए. नौ महीने तक गर्भ में रहे. पांच वर्ष तक मां की नजर कैद में रहे. पच्चीस वर्ष तक बाप की कस्टडी में रहे. उसके बाद जैसे ही शादी हुई फिर कैसी गुलामी, विषय की गुलामी ? जैसे बुढ़ापा आया बच्चों की गुलामी. कभी कोई काम आ जाए और मैं चर्चा छेडूं की इसे करना चाहिए तो कहेंगे महाराज, बच्चों से पूछ कर बताऊँगा. सारा जीवन इस गुलामी में पूरा होता है. जीवन में आजादी हैं कहां ? स्वतन्त्रता है। कहां? व्यक्ति बात करता है मुझे आजादी चाहिए, स्वतन्त्रता चाहिए. यम-नियम का बन्धन नहीं चाहिए. मर्यादा बन्धन नहीं, जीवन का अनुशासन है. आज का मनुष्य यह सोचता है कि नियम का बन्धन नहीं चाहिए. व्रत, नियम प्रतिज्ञा नहीं चाहिए. आजादी चाहिए तो कटी पतंग जैसा ही परिणाम आएगा. इन्सान को बौद्धिक विकार को लेकर नशा चढ़ता है. ज्ञान का अजीर्ण हो जाता है. सन्निपात की स्थिति आ जाती है. बीमारी में वात, पित्त, कफ सब एक नाड़ी में आ जाए, उसे सन्निपात कहते हैं. व्यक्ति फिर बकबक करता है. तीनों सम नाड़ी में आती हैं. वह मृत्यु से पूर्व की भूमिका है, मृत्यु निश्चित है. बक बक बक करने लग जाता है. उसे मालूम नहीं, क्या बोल रहा हूं? मेरे सामने कौन है? सब भूल जाता है. बकवास करता है. हमारे यहां भी पैसा आ जाए, पद आ जाए, ज्ञान आ जाए तो मनुष्य सन्निपात की स्थिति में आ जाता है. वह कहता है- मुझे यम नियम नहीं चाहिए, बन्धन नहीं चाहिए. अनुशासन नहीं चाहिए यम नियम और परमात्मा के आदेश की परतन्त्रता नहीं चाहिए. नहीं चाहिए तो यहां आग्रह तो है नहीं, परन्तु उसका यही परिणाम आए सारा जीवन आपका बन्धन में जाता है. कोई ऐसी जगह है, जहां बन्धन न हो ? यम नियम आपको 94 For Private And Personal Use Only ट
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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