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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -गुरुवाणी अपने अन्तर्हृदय में नहीं देखते कि परमात्मा अन्तर में ही छिपा है. मन्दिर तो उसे प्राप्त करने के माध्यम हैं. चित्त की एकाग्रता को प्राप्त करने के साधन को, यदि आप साध्य मान लेंगे तो बड़ी भयंकर भूल होगी. उस माध्यम से स्वयं को पाना है. बच्चों को पुस्तक दी जाती है. ज्ञान तो उसके अन्दर है. पुस्तक एक माध्यम है ताकि उस ज्ञान का विकास पुस्तक के माध्यम से हो. परमात्मा की मूर्ति के द्वारा, उस अवलम्बन से स्वयं को पाना है. ब्रह्मा जी ने सब को समान आयुष्य का वितरण कर दिया. बैल ने कहा भगवन! मुझे बचाइये. यह इन्सान बेमौत मार डालेगा, कसाई के हाथों में दे देगा. काम निकलते ही स्वार्थपूर्ति होने के बाद, मेरी बड़ी दुर्दशा हो जाएगी. उन्होंने तो चालीस-चालीस वर्ष का समान आयुष्य वितरण किया हुआ था. भगवान ने कहा - "ट्रांसफर हो सकता है, रिटर्न होना संभव नहीं. इन्सान खड़ा था – भगवन्! चलेगा. लेने को तैयार हूं. बीस वर्ष बैल का मिल गया. इन्सान बड़ा प्रसन्न हो गया. वह आशा लगाए खड़ा था, शायद और कुछ मिल जाए. कुत्तों की भी बहुत बड़ी सभा हुई. उन्होंने निर्णय किया हम तो इन्सान के बड़े वफादार हैं. इन्सान परमात्मा का कितना वफ़ादार है, वह विचारणीय विषय है. कलियुग में हमारी क्या दशा है? हमारी जाति को बहुत बदनाम किया जा रहा है. हमारी वफादारी लोगों के ध्यान में नहीं आती. कुत्तों ने विचार करके निर्णय कर लिया और ब्रह्मा जी के पास गए, बोले कि भगवन्! हमारा लम्बा आयुष्य घटा दीजिए. हम इस प्रकार जीना नहीं चाहते. ब्रह्माजी बोले, भाई ट्रांसफर हो सकता है पर रिटर्न नहीं हो सकता. वापस नहीं लिया जा सकता. कत्तों ने कहा - जैसा आप उचित समझें. यदि रिटर्न नहीं हो सकता तो ट्रांसफर कर दीजिए. इन्सान खड़ा था आशा लगाए कि कुछ मिलेगा. बीस वर्ष कुत्तों का भी मिल गया. समय पूर्ण हुआ परमात्मा तो चले गए. परमात्मा ने वहां पर जो वरदान दिया था, वह हमारे जीवन में साकार हो रहा है. हमारे जीवन की वर्तमान में दुर्दशा देखिए. देखा कभी, चालीस वर्ष हक का होता है. उसके बाद बीस वर्ष बैल का लिया. इस कल्पना में अपने जीवन की सच्चाई को देखिए. चालीस वर्ष तक माता-पिता विद्यमान होते हैं. सास-ससुर होते हैं. हरा-भरा परिवार होता है. शरीर सशक्त होता है. निश्चिन्त रहता है. किसी बीमारी का आक्रमण नहीं होता. चालीस वर्ष के बाद दो चार जमाई आ जाएं. दो चार सुपुत्र हो जाएं. घर के अन्दर लड़की बड़ी होने लग जाए. फिर देखिए चालीस साल से साठ तक बीस वर्ष कैसा जाता है. बैल की तरह मजदूरी सारे घर का वज़न. आज जमाई की चिन्ता, लड़कों की चिन्ता, बहू की चिन्ता, शादी की चिन्ता, सब तरह की चिन्ता ही चिन्ता होती है. दुकान की समस्या, कमाई की समस्या, पसीना उतारते हैं. सुबह से शाम तक धूप, गर्मी, सर्दी, सब बर्दाश्त 93 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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