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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra एक दिन उसके कहा भक्ति के लिए उमड़ पड़ती है । गिरजाघर जाता झार को खुशी होती थी कि उस गिरजाघर में हर रविवार को भीड़ उमड़ पड़ती थी । पादरी ने कहा विचारणीय है । www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 96 फादर ! हमारे देश की जनता कितनी धर्मालु है | ईश्वर अनेक जन आते हैं, मगर उनमें ईश्वर भक्त कितने हैं, यह पीटर ने आश्चर्य से पूछा- मैं आपके इस कथन का मतलब नहीं समझा । पादरी ने कहा- इस बात का रहस्य जानना है तो इस बार आप यह घोषणा करवा दे कि अगले रविवार आप नहीं आऐंगे । केवल कहना हैं, आना तो आपको है ही । “पर मैं आ रहा हूँ ।" पीटर ठीक से समझ नहीं सका पर पादरी के कहने पर घोषणा करवा दी गई । अगले रविवार जब वह आया तो देखा कि वहाँ केवल दस ग्यारह व्यक्ति ही है । पादरी के चेहरे पर मुस्कराहट थी । पीटर महान समझ गया कि वे व्यक्ति धर्म के प्रति लगन के कारण नहीं, अपितु पीटर की नजरों में आने के लिए ही आते थे । उन्हें भला ईश्वर से क्या लेना-देना । लोगों की इस वृत्ति पर पीटर को बड़ी वितृष्णा हुई । उसने सोचा, काश मैंने गिरजा घर निर्माण करने के बदले लोगों में धर्म की वृत्ति का रोपण किया होता । इस तरह हम देखते हैं कि धर्म के प्रति रूझान रखना कई निमित्तों से होता है, पर वास्तव में धर्म के प्रति श्रद्धावान होना कुछ लोगों को ही रास आता है । जो धर्म से जुड़ जाते हैं, वे अपनी रुझान में वृत्ति में धर्म को प्रतिस्थापित कर लेते है, उनके प्रत्येक व्यवहार में धर्म ही धर्म प्रकट होता है । वे धर्म-संदर्भ में सहिष्णु होते हैं । वास्तव में वे ही अनेकांतवादी होते हैं । ऐसे ही धर्म से परमार्थ होता है । जो पराई पीर को जानता है, वही धर्म के सार को जानता है । जो धर्म का सार जानता है वह प्रशस्ति से भरे पथ का यात्री होता है । वही धर्म की पूर्णता पा सकता है । अध्यात्म के झरोखे से For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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