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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हो जाए तो अग्नि का प्रज्वलन हो जाता है, अग्नि का प्रवर्धन होता है, वह प्रकाश फैलाती है, ताप देती है, अंधकार को हटाती है, शीत को परे कर देती है, उसी प्रकार जब धर्म को धार्मिक परधर्म साधन मिलते हैं तो धर्म की तेजस्विता में और भी प्रखरता आ जाती है । आध्यात्मिक उपलब्धियों का शक्तिपात भी होता है । अर्थात् वे एक उच्चस्थ स्थापित माध्यम से दूसरे में भी संक्रामित भी होता है । जैसे कि गुरु रामकृष्ण परमहंस ने शिष्य नरेन्द्र को शक्तिपात के द्वारा आत्मा की गहन अनुभूतियों से जोड़ा था और ये आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व विख्यात हुए । अध्यात्म, धर्म, आत्म- पवित्रता से ही जीवन की शुद्धि होती है । अध्यात्म की भूमिका पर जिससे भी सम्पर्क होगा, वह आनंद का अपरिमेय देता है । वैसा धर्म एक ज्योतिर्मय अनुभव होता है । धर्म की तलाश जो पूरे मनोयोग से करता है, वह उसे अवश्य पाता है। जो धर्म- जीवन से जोड़ता है, उसके लिए धर्म अतीत है, वर्तमान है और भविष्य भी । धर्म वह है जो अधर्म नहीं है । दो बातें है-धर्म है और अधर्म नहीं है । है और नहीं है इन दोनों छोरों के बीच स्थित है एक तथ्य । है, नहीं है, दीपती- बुझती रोशनी की तरह कुछ हमारे भीतर झप झपाता है । होना सार्थकता है, नहीं होना एक शून्य है । शाश्वत और अशाश्वत की सीमा रेखा खींची जाए तो धर्म शाश्वत के पाले में होगा । जो शाश्वत है, उसकी प्रासंगकिता महत्त्वपूर्ण है । धर्म सूर्य की अनुपम सीमा है । धर्म न अप्रतिम संकल्प है। ऐसे मन से ही आध्यात्मिक मनीषा संपन्न होगी धर्म ही एक ऐसा साधन है जो दुःखी को सुखी बनाता है । धर्म अनेकांतमूलक है । धर्म का प्रदर्शन तो कई लोग करते हैं पर असल में वे सभी धार्मिक हो, यह कतई जरूरी नहीं है । एक प्रसंग मेरी स्मृति में उभर रहा है। रूस के झार पीटर का प्रसंग है । उसमें पर्याप्त उदारता थी और धर्म के प्रति निष्ठावान भी था वह । वह धार्मिक वृत्ति के लोगों का खूब सम्मान करता था । उसने अपने धन से एक विशाल गिरजाघर बनवाया था। लोगों ने उस विशाल गिरजाघर की बहुत सराहना की । वह प्रति रविवार प्रशान्ति का आधार : धर्म For Private And Personal Use Only - 95
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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