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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 94 ― N_प्रशान्ति का आधार : धर्म 12 www.kobatirth.org ब हुत कुछ अनायास ही पाया जाता है, परन्तु धर्म और अध्यात्म का अर्जन करना होता है | चाहे तो इसी जन्म में या पूर्व जन्म से भी यह अर्जन संभव है । जो अर्जित होता है उसके लिए सदा ही सजगता रखी जाती है । यह सजगता ही उसकी गंभीरता सिद्ध करती है । श्रम से जो साधक दुष्कर आराधना करता है तथा दुःसह परिषहो को समभाव से सहता है वह धर्म को पाता है । अहिंसा, संयम और तप धर्म है । सेवा भी धर्म के अंतर्गत है । अधिक से अधिक समय धर्म आराधना में लगाने से जीवन प्रकाश से भर जाता है । अध्यात्म से यह ज्योति पाई जा सकती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म का कोई भी सतत विरोधी नहीं होता है, कहीं न कहीं वह भी अध्यात्म से जुड़ा रहता है । जो धर्म से जुड़ा है वह इसे ही जीवन का प्रमुख आचरण मानता है । वह उसे एक विशिष्ट आत्म विद्या भी मानता है । धर्म, मनुष्य की अंतरानुभूति है । मनुष्य के अंतर से जो प्रकट होता है, वह धर्म का ही स्वरूप होता है । हर मनुष्य को अंतरंग का हर क्षण में आभास होता है । यह बात ही सर्व रूपेण यथार्थ है । पर झुठलाने भी लगे हैं कई लोग ! वे धर्म - विमुख कहे जा सकते है । जैसे अग्नि को ठीक मात्रा में इंधन व ऑक्सीजन की उपलब्धि अध्यात्म के झरोखे से For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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