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आराम में बिता देता है। जितना कम समय होगा, कार्य को सम्पन्न करने में उतनी ही तत्परता रहेगी ।
जीवन को सदा ही सीमित मानना चाहिए इस सोच से आसक्ति कम होगी और आसक्ति जब होगी तो व्यक्ति पापों का परिग्रह की दासता स्वीकार नहीं करेगा । वह आध्यात्मिक समुत्कर्ष के लिए सतत प्रयत्नशील रहेगा । सदा जागृति रखना ही जीवन की सही समझ है । तभी तो हम जीवन की अर्थवत्ता को पा सकेंगे । जीवन वास्तव में आस्था का अनुष्ठान है, बुरी से बुरी स्थिति से भी बचकर यदि जागरूकता रहे तो प्रयत्न करके शिखर तक पहुंच सकते है। केवल मन की तैयारी हो, संकल्प पूर्व बढ़ा जाए ।
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समय की महत्ता वही समझ सकता है, जिसका ध्येय ऊंचा हो, जो कृत संकल्प हो, समय की अल्पता का जिसे ज्ञान हो । वही व्यक्ति सतत सक्रिय होता है। जो इस भावना के विपरीत है उसका जीवन प्रमाद में, निद्रा में, अनावश्यक क्रिया में व्यतीत होता है । भगवान महावीर ने गौतम को सत्य ही कहा था - 'समयं गोयम ! मा पमायए । ' हे गौतम एक समय का भी प्रमाद मत करो। समय का लाभ उठाने का प्रयत्न हो तो लाभ मिलता है ।
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समय पर यदि सजगता न रखी जाए तो व्याहारिक क्षेत्र हो अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र दोनों में ही व्यक्ति पिछड़ जाता है। समय के लिहाज से जिंदगी बहुत छोटी है । कहा जाता है कि जिंदगी सिर्फ चार दिन की होती है । इस छोटे से समय को लोग व्यर्थ बातों में ही बिता देते हैं । जब ध्यान आता है, तब तक समय गुजर गया होता है, और समय गुजर जाने पर पश्चात्ताप के अतिरिक्त रहता ही क्या है । चिराग बुझ जाने पर तेल डालना, चोर के भाग जाने पर सावधान होना, पानी बह जाने पर बांध बांधना ये सब उपक्रम व्यर्थ है ।
सतत सक्रियता पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी प्रिय थी । वे कहा करते थे " आराम हराम है ।" उनकी इस भावना की प्रेरणा उन्हें राबर्ट फ्रास्ट की कविता के
अध्यात्म के झरोखे से
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