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सुबहुपि सुयमहियं किं काही ? चरण विप्पहीणस्स । अंधस्स जहपलिता, दीवसंयसहस्स कोड़िवि 11 अप्पंपि सुयमहीयं, पयासयं हइ चरण जुत्तस्स । इक्को वि जह पइवों, सचक्खुअस्सापया सेई !!
जैसे अंधे व्यक्ति के लिए करोड़ों दीपकों का प्रकाश व्यर्थ है पर आंख वाले व्यक्ति के लिए एक भी दीपक का प्रकाश सार्थक है, उसी प्रकार जिसके अन्तर चक्षु खुल गये हैं, जिसकी अंतर्यात्रा प्रारंभ हो चुकी है, ऐसे आध्यात्मिक साधक के लिए स्वस्थ अध्ययन भी लाभप्रद है । आत्म विस्तृत व्यक्ति के लिए करोड़ों पदों का ज्ञान भी नितांत निरर्थक है ।
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय हो जाता है । आत्मा उस स्थिति में सम्यग् ज्ञान का अर्जन करती है । जो आत्मा का कर्म कलुष सर्वथा मिटा देता है, ज्ञान व दर्शन के आवरणों को हटा देता है । उनमें एक चैतन्य की जागृति होती है । जागरण के संदेश से सभी प्रकार की संकीर्णताओं पर कठोर प्रहार होता है। ज्ञान की धारा के प्रवाह से भारत भूमि सदा ही समृद्ध रही है । हमारे ऋषि-मुनियों ने इस धारा को प्रवाह से सतत संलग्न रखा है ।
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ज्ञान ही जीवन का सार है। बिना ज्ञान के जीवन, जीवन नहीं है । ज्ञान, अंतर में उदित होता है और पूरे वातारण को आलोक मय बना देता है । ज्ञान ऐसी संविधा है
जिसके आधार पर मनुष्य की सभी जीविषा सुलझती है । वह अनंत आयामों का स्पर्श करने लगता है । व्यक्तित्व के निर्माण में ज्ञान सर्वोपरि है । ज्ञान से सृजन होता है, ज्ञान से अर्जन होता है । ज्ञान से ही अपरिमेयता की प्राप्ति होती है | ज्ञान से विश्वास आता है, ज्ञान से अनुशासन आता है । ज्ञान मूर्च्छाओं से परे करता है ।
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भगवान महावीर ने अपने दर्शन में आत्म-ज्ञान को मूल विषय बताया है । आपने आत्मा-परमात्मा, कर्म, कर्मफल, लोक, अलोक, धर्म नीति का विवेचन किया है । आपका विवेचन बड़ा सूक्ष्म व तलस्पर्शी है । ज्ञान के क्षेत्र में स्वाध्याय महत्त्वपूर्ण है ।
84 अध्यात्म के झरोखे से
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