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जो वस और स्थावर, समग्र जीवों पर समभाव रखता है, उसकी सामायिक शुद्ध सामायिक है, ऐसा केवली भगवान ने कहा है । साधु जीवन की सामायिक सर्वव्रती और गृहस्थ जीवन की सामायिक देशव्रती कहलाती है। जैसे शरीर की पुष्टि के लिए भोजन आदि आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मबल बढाने के लिए सामायिक जरूरी है। • सामायिक कायिक चेष्टा से अधिक, मानसिक प्रयास है। मानसिक प्रशांति, संतुलन और समतोलन के लिए सामायिक का विधान किया गया है। चांचल्य को स्थिरता और भटकाव को योग्य मार्ग इसी विधि के द्वारा प्रदान किया जाता है । सामायिक एक प्रकार से आत्म-रमण है । मनुष्य जन्म वस्तुतः पुण्य से मिला है। यह पुण्य, धर्म की प्रक्रिया के लिए अपने को प्रवृत्त करने में सहभागी हुआ करता है । जीवन का कल्याण ऐसी ही क्रियाओं से संभव है। धर्म क्रियाओं की श्रेष्ठता के लिए कहा जाता है -
धर्म करत संसार सुख, धर्म करत निर्वाण ।
धर्म पंथ साधन बिना, जीवन पशु समान ॥ __ मन का शांत होना ही जीवन में अध्यात्म का प्रारंभ है । शुद्ध मन और सात्त्विकता का नाम ही महावीर की दृष्टि में सम्यग् दर्शन है । इस स्थिति के लिए सामायिक का अपना विशेष महत्त्व है -
चित्त शुद्ध होता, मन निर्मल, आती अध्यात्म जागृति प्रशांति से अलंकृत होती इससे मनुष्य की आकृति आत्मशोधन का श्रेष्ठ स्वरूप है यह सामायिक .
एक मुहूर्त की इस क्रिया की करो नित्य आवृत्ति ॥ इस प्रकार हम देखते हैं कि सामायिक वह क्रिया है, जो हमें प्रमाद से बचाती है, और विकृति से परे रखती है। जीवन की उठान में इस क्रिया का अमूल्य योगदान रहता है। हर पल हर क्षण जीवन को उत्स की ओर अग्रसर करने में एक मुहूर्त अड़तालीस मिनिट का यह उपक्रम अत्युत्तम है । समभाव में रहने के लिए इसका
अध्यात्म-साधना का प्राणतत्व: सामायिक -79
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