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निष्प्राण है । सामायिक के अनमोल होने का तथ्य पूणिया श्रावक के प्रसंग में मिलता है । भगवान महावीर के निर्देश पर सम्राट श्रेणिक लाखों रूपये लेकर पूणिया श्रावक के पास सामायिक खरीदने गये, पर लाखों रूपये तो क्या, अपना सम्पूर्ण साम्राज्य दे कर भी, वे एक सामायिक नहीं खरीद पाए । कथा इस प्रकार है -
मगध सम्राट श्रेणिक ने एक बार भगवान महावीर के चरणों में अपनी भावी गति के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा तो भगवान ने कहा - तुम यहां से आयुष्य पूर्ण कर के नरक में जाओगे । भगवान ने आगे कहा-तदन्तर तुम्हे प्रभुमय जीवन प्राप्त होगा, देव, गुरु और धर्म के प्रति तुम्हारी श्रद्धा दृढ़ रहेगी । पूर्व कृत अशुभ कर्मों को भोग कर क्षय करोगे और आगामी भव में तुम तीर्थंकर बनोंगे । मैं तीर्थंकरत्व को उपलब्ध करूंगा, इस कथन को प्रभु से श्रवण कर श्रेणिक का मन प्रमुदित बना, पर उसे नरकायुबंध के कारण नरक में तो जाना ही पड़ेगा । श्रेणिक अत्यंत पीड़ित एवं चिंतित हो उठा । उसने बार-बार निवेदन किया - प्रभो ! ऐसा कोई तरीका हो तो आप बताइये जिससे मेरा नरक में जाना टल जाए । प्रभु ने जो तरीके श्रेणिक को नरक से बचने के लिए प्रदान किये, उन तरीकों में पूणिया श्रावक से एक सामायिक खरीदने का विकल्प भी रखा था।
यह विकल्प प्रभु ने इसीलिए रखा था कि श्रेणिक नियति के सत्य को जान लें एवं सामायिक के महत्त्व को भली-भाँति समझ लें । श्रेणिक ने सत्य को जान लिया और वह अपने भावी के प्रति तत्पर हुआ । श्रेणिक ने जान लिया कि आत्मा के अभ्युदय के लिए, आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए सामायिक का साधन-सशक्त साधन है | विषमता के कारण ही आत्मा कभी तिर्यंच गति में कभी नरक में, तो कभी मनुष्य योनि या देव गति में अनादि काल से परिक्रमा कर रहा है। यह परिभ्रमण तबतक रहेगा जबतक आत्मा, अपने आपसे, अध्यात्म से कटकर कर्म बंध करता रहेगा। सामायिक की शुद्धता एवं महत्ता पर सूत्रकृतांग में कथन है -
जो समो सव्व-भूएसु तसेसु थावरे सु य ।
___तस्स सामाइयं होइ केवलि भासियं ॥ 78 - अध्यात्म के झरोखे से
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