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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्थान है । सामायिक श्रमण व श्रावक दोनों के लिए आवश्यक है । सामायिक, आध्यात्मिक अभ्युदय एवं मोक्ष प्राप्ति का मुख्य अंग है । देखा आपने, हमारी साधना में सामायिक का कितना बड़ा महत्त्व है ! सामायिक जैनत्व को प्रकट करने का साधन है । जैसे नमाज को करने वाला स्पष्ट ही मुसलमान नजर आता है, ठीक उसी तरह से सामायिक की विधि सम्पन्न करता है, वह अध्यात्म के आचरण में गहराई में उत्तर आता है। सामायिक, मानव को मानवीयता से जोड़ता है । सामायिक करने से सहिष्णुता में अभिवृद्धि होती है, जो सामायिक सम्पन्न करता है, वह अपनी आत्मा के स्वरूप को समझता है । आचार्य श्री हरिभद्रसूरि ने सामायिक के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा - सामायिक विशुद्धात्मा, सर्वथा घातिकर्मणः । क्षयाद् केवलमाप्नोति, लोकालोक प्रकाशकम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक से विशुद्ध हुआ आत्मा, ज्ञानावरण आदि घाति कर्मों का सर्वथा अर्थात् पूर्ण रूप से नाश कर लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान प्राप्त कर लेता है । सामायिक रजकण को पहाड़ के समान विशालता प्रदान करता है । सामायिक ऐसा अभिनंदनीय उपक्रम है - जिसके माध्यम से शून्य में भी विशुद्धता का समावेश होता है । सामायिक लघुत्तम को महत्तम बना देता है । सामायिक मन को सर्वकालिक विचार - लब्धि से मिलाता है । सामायिक के क्षणों में आर्त-रौद्र आदि की अवस्थिति नहीं होती । वह अध्यात्म के केन्द्र से जुड़ा होता है, इस स्थिति में उसके हर व्यवहार में धर्म और केवल धर्म रहता है । यदि मानव अपने धर्म को भूल जाएगा तो उसके जीने का अर्थ ही नहीं रह जाएगा। सामायिक, मनुष्य को दीप्ति से प्रकाशित कर आत्म रूप बनाती है । सामायिक, मनुष्य को क्षण-क्षण सत् चिंतन में प्रयुक्त करता है, यह प्रयुक्ति जहाँ उसकी जीवन दिशा को प्रशस्त करती हैं, वही मनुष्य को परमात्मा में विलीन कर देती है । सामायिक की साधना को हम उत्कृष्ट साधना कह सकते है । जितनी भी अन्य साधनाएं हैं, वे सामायिक में अंतर्निहित हो जाती है । समता के बिना सामायिक अध्यात्म-साधना का प्राणतत्त्व : सामायिक - 77 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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