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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्बल, बहुत बड़ा सम्बल है। मनुष्य यदि इसमें रम जाए तो यह निश्चित है कि वह तिर जाए, मुक्त हो जाए। यह हर प्रकार के विभ्रमों से निकलने के लिए श्रेष्ठ विधि है। सामायिक चैतन्य का प्रतीक है। इससे जीवन में आध्यात्मिक तेज प्रकट होता है । साधना का क्रम निरंतर चलना चाहिए । निरंतरता से एक प्रभाव स्थापित होता है । साधक को परिषहों पर विजय पाने की शक्ति प्राप्त होती है । मन का दृढ़ निश्चय ही मोक्ष मार्ग में गतिशील रखता है। सामायिक मुख्यतः अध्यात्म से जुड़ा उपक्रम है । सामायिक के द्वारा सांसारिक फल की आकांक्षा ऐसे ही है जैसे चिंतामणि रत्न देकर बदले में कोयले की चाह करना। आध्यात्मिक-बल, संसार में सबसे बड़ा बल है। अध्यात्म-बल यह ध्रुव सत्य है कि प्रत्येक समस्या का हल है। जिसके पास में अध्यात्म का बल विद्यमान हैं, वह कभी कहीं भी पराजित नहीं होता | वह तो सुखों से समृद्ध बनता ही है - जो भी अध्यात्मनिष्ठ व्यक्तित्व की सन्निधि में पहुंच जाता है वह अपने दुःखों का सहज ही अवसान करने में सफल हो जाता है । तनबल, धनबल, परिजनबल, सत्ताबल किसीके पास कितना ही क्यों न हों, अध्यात्मबल के अभाव में सारे बल अपूर्ण हैं। सामायिक अर्थात् समत्व की साधना से अध्यात्म-बल उत्तरोत्तर बढ़ता है इस बल को, सामायिक से जुड़कर बढ़ाने का प्रयास रहना चाहिए । सामायिक अभय की साधना है, समत्व की साधना है। जैसा कि प्रारंभ में व्यक्त किया जा चुका है सामायिक का अर्थ समत्व भाव है । समत्व, एक प्रकाश है । जब-जब भी जीवन में समत्व का प्रकाश जगमगता है, तब-तब आत्मा का वैभव जागता है। शास्त्रों का कितना ही ज्ञान क्यों न हो. समत्व का प्रकाश यदि नहीं है तो आध्यात्मिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। समत्व का प्रकाश जीवन में जगमगाएगा तभी जीवन के परम तथ्य को निर्विघ्न रूप से प्राप्त किया जा सकेगा। 80 - अध्यात्म के झरोखे से For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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