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नहीं, अधर्म है। धर्म एक जीवन-शैली है । धर्म वह है जो जीवन में गहराई तक ढाला जाता है । धार्मिक भावनाएं जब भी कमजोर होती है अधर्म को प्रश्रय मिल जाता है। अतः अधर्म को नहीं अपितु धर्म को मजबूत करें।
धर्म, अमृत स्वरूप है । विवेक के अभाव में धर्म को उल्टे रूप में ग्रहण करने से वह अधर्म हो जाता है । विवेक के बिना निष्प्राण है धर्म ! विवेक में धर्म निहित है, विवेक धर्म का प्राण है । धर्म का स्थान गौण हो रहा है आज ! धर्म जीवन का मार्गदर्शक दीप है । विवेक से सम्पन्न व्यक्ति ही आत्मा को उज्ज्वल बनाता है, पथ प्रदर्शक बनाता है। धर्म की ज्योति जहाँ जगी हो वहाँ पर कल्याण होता है । जब तक मनुष्य के अंतस में धर्म की ज्योति का वास नहीं होता, निरर्थक है उसका जीवन । धर्म ही उत्कृष्ट श्रद्धेय है। धर्म के संदर्भ में अपने मनोभाव यूं प्रकट किये जा सकते हैं .
धर्म जीवन का उत्कृष्ट आधार है, धर्म आत्मा का उत्तम प्रकार है धर्म ही है अंतिम शरण मनुष्य की
धर्मनिष्ठ ही प्रभु रूप साकार है । धार्मिक की कसौटी है - सहिष्णुता, स्थिति के अनुरूप हो जाने की क्षमता । धार्मिक सत्य पर सदा दृढ रहता है । धार्मिक दुःख के क्षणों में बिलखता नहीं है।
धर्म, जीवन की कला है | जो जीवन जीने की सही कला जानता है वही सही अर्थ में धार्मिक कहा जाता है। निर्मल चित्त का आचरण ही धर्म है । चित्तवृत्तियों का निरीक्षण-परिष्करण धर्म है । आत्महित के साथ ही परहित धर्म है। जहां अहित होता है - वहाँ अधर्म स्थित है। आत्मोदय-सर्वोदय का सामंजस्य धर्म है । जीवन मूल्यों के लिए धर्म साधना है. मंगलमय जीवन को जीना ही धर्म है । धर्म वस्तुतः एक आदर्श जीवनशैली है । धर्म के पालन का मुख्य उद्देश्य श्रेष्ठता है। उसका परिपालन कर हम मानव बनें । धर्म भेद-भरी दीवारों को तोड़ने का प्रयोग है।
धर्म : एक आदर्श जीवन शैली - 73
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