SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सर्वोपरि रखने की वृत्ति पैदा हो जाती है तो कभी किसीमें अविवेक ही अविवेक विद्यमान रहता है और वृत्तियाँ एकबार भी बदला नहीं करती । - विवेक से यदि कार्य हो तो आतंक को पैर जमाने का मौका नहीं मिलता । विवेक एक उदार दृष्टिकोण को पनपाता है । विवेक श्रेष्ठ प्रणाली का विचार एक अघोषित वचन है | विवेक उन सब तथ्यों को रोकथाम करता है जो विकार को पनपाने में मददगार होते है | विवेक मनुष्य के उन आचरणों की जांच-पड़ताल करता है जो मनुष्य को पतन के गर्त में धकेलने में जुटे हुए होते है। विवेक हर प्रकार के रोष को खत्म करता है | जिस मनुष्य के मस्तिष्क में विवेक एक बार पैर जमा लेता है, उस पर फिर कभी अभिशाप की छाया नहीं पड़ती । विवेक अर्जित कर कई व्यक्ति उसे अन्यों में बाँटने की वृत्ति भी रखते है । उनके विवेक का लाभ अन्यों को भी मिले, इस भावना से वे औरों से सम्पर्क करते है, या लोग उनके संपर्क में आते है | कल्याण भावना से ओत-प्रोत ऐसे व्यक्ति समाज में ऊंचा स्थान पाते हैं । विवेक यदि अन्यों को लाभ पहुंचाकर मानवता को दयनीय अवस्था से मुक्त करता है तो यह उसकी सार्थकता होती है । विवेक के कारण जब भी कोई समस्या का निदान होता है तो उसे भी हर कोई स्वीकार करने में गौरव महसूस करता है। विवेक ही मनुष्य को विवेकी, विनम्र और विनयी बनाता है । दशवैकालिक सूत्र का यह कथन विवेक के महत्त्व को स्पष्ट करता है । जागृत विवेक में पाप बंध नहीं होगा । जिज्ञासु द्वारा प्रश्न किया गया मनुष्य कैसे चले, कैसे ठहरे, कैसे बैठे, कैसे सोये, कैसे खाये और कैसे बोले कि पाप कर्म का बन्ध नहीं हो ? उत्तर स्पष्ट था- मनुष्य विवेक से चले, विवेक से ठहरे, विवेक से बैठे, विवेक से सोये, विवेक से खाये, विवेक से बोले तो पाप - बन्ध नहीं होगा । दोष व्यक्ति का उसका अपना प्रमाद है । त्रुटि होना कोई बड़ी बात नहीं है | त्रुटि को विवेकपूर्वक सुलझाया जा सकता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवेक कभी भी आधारहीन नहीं होता है। विवेक से हर समस्या का सहज समाधान पाया जा सकता है। विवेक से सभी का भला होता है । विवेक हिंसा से, चौर्यकर्म से, संयमहीनता से, परिग्रह से, असत्य से मानव को बचाता है। विवेक 66 अध्यात्म के झरोखे से - For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy