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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विवेक का पहला काम मिथ्यात्व को पहचानना है और दूसरा काम है सत्य को जानना । सचमुच विवेक सोने, चांदी, शोहरत, दौलत, सौन्दर्य आदि से भी ऊंची चीज है | विवेक में निश्चय ही एक शाश्वतता है । विवेक से ही तो जाना जाता है कि सत्य क्या है, मिथ्या क्या है, ग्राह्य क्या है और त्याज्य क्या है ? विवेक जीवन को जुड़ाव देता है । विवेक से विकास विनष्ट होता हैं । विवेक प्रपंचों से परे रखता है । विवेक, व्यक्ति को एक सफल व्यक्तित्व बनाता है । व्यक्ति विवेक अपना कर अपना ही नहीं मानव मात्र का कल्याण करता है । ऐसे कल्याणकारी विवेक के प्रति अनुकूल भाव रखना ही अत्यावश्यक है। विवेक के कारण ही अकेला व्यक्ति कबीले की शक्ल में ढला | विवेक के बल पर ही व्यक्ति चिन्ता से मुक्त हो जाता है। विवेक ही हर प्रकार के भटकाव का अन्त करता है। जिसका विवेक कायम रहता है, समझो उसे किसी भी यंत्रणा के दौर से गुज़रना नहीं पड़ता 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवेक एक ऐसी समृद्ध चेतना है, जो न व्यक्ति को कृपण रखती है न उसे कंगाल बनाती है । विवेक तो एक समृद्धि है । विवेक के कारण ही व्यक्ति उन सब विभीषिकाओं व अभिशापों से बचता है जो अविवेकी स्थिति में व्यक्ति को असहाय बना देती है । - गर्नेट के अनुसार “विवेक तार्किक नहीं वरन जीवन में कौशल या चतुराई का होना है ।" आचरण में विवेक ऐसी लोचपूर्ण दृष्टि है जो स्थिति के सभी पक्षों की सम्यक् विचारणा के साथ खोज करती हुई सुयोग्य चुनावों को अवसर देती है । जैन-दर्शन में विवेकपूर्ण आचरण के लिए "यतना" शब्द का प्रयोग हुआ है । यतना के द्वारा जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य सर्वोपरि श्रेष्ठता पाता है । विवेकसम्मतता सब में एक समान नहीं होती। कही कम कहीं ज्यादा । परन्तु जब सम्मिलित रूप से विवेक का उपयोग किया जाता है तो उसका प्रभाव स्पष्ट व पूर्ण पाता है । विवेक अतीत में था, वर्तमान में है, भविष्य में भी रहेगा, क्यों कि अविवेक भी तो साथ- साथ विद्यमान रहा है । अविवेक की स्थिति में ही तो विवेक का मूल्यांकन हो जाता है। विवेक वृत्तिगत वस्तु है । बहुधा किसी व्यक्ति में हर स्थिति में मनुष्य विवेक से चले, विवेक से बढ़े 65 For Private And Personal Use Only -
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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