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प्रत्याहारस्तथा ध्यानं प्राणायामोऽक्ष धारणा । तर्कश्चैव समाधिश्च षडङ्गो योग उच्यते ॥
तेजोबिन्दूपनिषद में योग के पन्द्रह अंगो की चर्चा आई है
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यमो हि नियमस्त्यागो मौनं देशश्व कालतः आसन मूलबन्धस्य देहसाम्यं च दृक् स्थितिः प्राणसंयमनं चैव प्रत्याहारश्च धारणा आत्माध्यानं समाधिश्च प्रोक्तात्यङ्गानि वै क्रमात् ।
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यम, नियम, त्याग, मौन, देश, काल, आसन, मूलबन्ध, देहसाम्य, दृष्टि की स्थिति, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, आत्मध्यान और समाधि ये पन्द्रह अंग हैं ।
बुद्ध धर्म में योग के महत्त्व की चर्चा आती है । बुद्ध के काल में भारत में योगविद्या सुप्रतिष्ठित हो गई थी । गया के निर्जन वनों में बुद्ध ने आस्फानक नायक समाधि में प्रवेश कर अपार देह दण्ड सहा था । बुद्ध धर्म का स्वतन्त्र योगशास्त्र है । इसका पातंजलि योगदर्शन से साम्य देखा जा सकता है । " गुह्य समाज" नामक ग्रन्थ में योग की चर्चा आई है । बौद्ध आचार्य अष्टांगयोग न मानते हुए षडंगयोग मानते है । प्रत्याहार, ध्यान, प्राणायाम, धारणा, अनुस्मृति और समाधि बुद्ध योग दर्शन के छः अंग है ।
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जैन आगमों में योग के सात अंग यो मिलते हैं महाव्रत, नियम, स्थानयोग, (कायक्लेश) प्रतिसंलीनता, भावना, धर्मध्यान, शुक्लध्यान |
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ध्यान : एक आकलन
ध्यान के सम्बन्ध में पातंजलि योगसूत्र ( ३ / २) में लिखते हैं | तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्
तत्र यानि जिस वस्तु पर चित्त की धारणा की हो वही एक जानता - ध्यान
चेतना की सर्वोच्च अकम्प अवस्था : ध्यान
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