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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | रतीय चिन्तन परम्परा में योगविद्या मा अनुभवसिद्ध प्रयोगविद्या है । हमारी प्राचीन आध्यात्मिक सम्पत्ति के रूप में योग का महत्त्व अक्षुण्ण है। योगविद्या प्राणविधा से घनिष्ठ अर्थों में संबद्ध है। तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रिय धारणाम् । (कठोपनिषद २-६-११) (आत्मा के स्थान पर) इन्द्रियों की स्थिर साधना करने की प्रक्रिया का नाम है । उपनिषदों में आने वाली योगचर्चा न केवल एक दर्शन के रूप में आई है अपितु क्रियात्मक साधन के रूप में भी उसकी वरेण्यता के दर्शन होते है। ___योगसाधना को उपलब्ध होने वाले व्यक्ति द्वारा प्राप्त फल की चर्चा श्वेतास्थतरोपानिषद में यों आती है - न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः। प्राप्तस्य योगाग्निभयं शरीरम् ॥ (२-१२) योगाग्निमय शरीर को धारण करनेवाला व्यक्ति रोग को प्राप्त नहीं होता है, ना उसे वृद्धत्व आ घेरता है और ना ही मृत्यु उसे स्पर्श करती है। अमृतोपनिषद में प्रत्याहार, ध्यान, प्राणायाम धारणा, तर्क, समाधियों, षडंगयोग वर्णित है - 52 - अध्यात्म के झरोखे से ७_चेतना की सर्वोच्च अकम्प अवस्था : ध्यान For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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