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हमारी पास अध्यात्म की बहुत ही श्रेष्ठ परंपराए है। व्यापक चिंतन इसके एकएक पहलू पर हुआ है । बड़े-बड़े प्रयोग हुए है, बड़े-बड़े उदाहरण भी हमारे सामने है पर सब को भुलाकर ही हम कदम-कदम पर यन्त्रणाएं भुगत रहे हैं पर मेरा अपना अखूट विश्वास है कि अध्यात्म को अपना कर हम पुनः अपनी पहले सी उच्च-स्थितियों में आयेंगे ।
यह केवल आदर्श कथन मात्र न माना जाय । इसे एक दूर की बात कह कर टाला भी नहीं जाये । जीवन के सम्पूर्ण सुख एवं आनंद के लिए हमें इस आदर्श को पाना ही होगा। जितना अधिक हम इसे पाते जायेंगे उतना ही हम उभरते चले जायेंगे । वक्त लग सकता है, पर उभरने में कोई बाधा है ऐसा नहीं कहा जा सकता। जरूररत है हमारे मन की तैयारी की। कई प्रकार के प्रलोभनों से आज मानव गुंथा हुआ है । पहले वह उन फंदों से अपने आपको छुड़ाए और फिर सही मार्ग पर चल पड़े ।
अच्छाई और बुराई तो सर्वदा रही है। एक दूसरे की इस रस्साकशी में ही तो अंततः सही व्यक्ति जीतता है । हमें क्षण प्रतिक्षण सही होना है। हमारा हर व्यवहार भौतिक आग्रहों से मुक्त हो । अध्यात्म की आराधना से हम विकृतियों से मुक्त होंगे, हम सफल होंगे, हम विजयी होंगे इसी आशा एवं भावना के साथ हमें आगे और आगे बढ़ना है। इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टिकोण बनते ही व्यक्ति की हर प्रवृत्ति में अद्भुत संतुलन आ जाता है । धर्म अथवा अध्यात्म की उपेक्षा करके कोई भी व्यक्ति शांतिपूर्ण जीवन जी नहीं सकता। आज अध्यात्म चेतना सुषुप्त है इसीलिए चारों ओर संकट है ।
अपेक्षित है, अध्यात्म के प्रति आंतरिक निष्ठा जागृत हो । निजत्व से जिनत्व को प्रकट करते जाना, स्व की खोज एवं बोध की परीक्षा अध्यात्म है। जड़-चेतन रूप पदार्थ की समीक्षा तथा निजत्व की अनुभूति का सम्प्रयास अध्यात्म है । अध्यात्मसार एवं अध्यात्मोपनिषद के अनुसार निर्मोह अवस्था में आत्मा को अधिकृत करके जो शुद्ध क्रिया प्रवर्तित होती है, वही अध्यात्म है। शुद्ध आत्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान अध्यात्म है । विशुद्ध अनुष्ठानों में आगे बढ़ना ही आध्यात्मिक 48 अध्यात्म के झरोखे से
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